अंधे आकाश का सूरज | Andhe Akash Ka Suraz
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा नाम : 23
ओर कुसुम सारी बातें सुनती है। गिरह बांधती जाती है ।
अब चलने का समय हो गया हैं। स्टेशन तक छोड़ने के लिए टमटम
आ गया है । अनु सो गई हैं ।
वह पिता के पैर छूता है--“जल्दी हो अनु को भेज देंगे''*विता मत
कीजिएगा 1
“स्कूल से जुड़ने के वाद, भला कोई छूटा है वेटे । पहली, फिर
दूसरी, फिर तीसरी“*“आगे**और आगे***” इसके आगे ये कुछ नहीं
कह सके ।
कुमुम ने पैर छूए तो वोले--“वेटी, मेरे बिस्तर पर सो रही है अनु ।
रोज़ मेरे साथ ही सोती रही उसे आहिस्ता से उठाना, जग जाएगी ।
बढ़ी कच्ची नींद है'**मैं रात में करवट भी लेता था, तो धीरे से “*”
और उनकी आवाज़ भर्रा जाती है । दुमुम को लगा, उनके पाव भी बाप
रहे हैं ।
बह विस्तर तक आई । अनु सो रही है दादाजी के तकिए पर | बह
उठाने को होती है कि पिताजी कहते हैं--“बढ़ू, जल्दी करो ॥ गाही का
समय हो रहा है** और हा, इसे तकिए की भी आदत है**'मैं तो यू ही
सो लेता था***”
अचानक कुसुम कहती है--/नद्ी बाबूजी, हम इसमे नहीं से जा रहे
हैं। स्कूल में दो महीने वाद दाखिला द्वोगा, फिर ले जाएंगे***अनु के कपडे
मैंने बिस्तर पर निकाल दिए हैं***” ओर वह सूटकेस लेने भीवर खली
गई। जल्दी-जल्दी अनु के कपड़े मूटकेस से निकाल कर बाहर भा गई ।
वह कुछ नहीं समझ पाता है : ने ठागे में, ने ट्रेंड में, ने तब, जब
कुसुम कहती है--“हम अनु को नहीं लाएंगे दो महीने बाद भी महीं।*”
कभी नही **वे लोग उसे बहुत प्यार करते हैं ““मेरा क्या है, यही कह-
कर संतोष कर लूी कि मैं सौतेसी मा हू'।ववच्ची को अलग रखता
चाहती हूँ***”
बस, उसे लगता है, उसी की तरह दुसुम भी बपरते भीदर कीर्ई
लड़ाई लड़ रही है | धर पहुंचते पर, सोते से पढ़ते बढ़े सोचता है. ३
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