अंधे आकाश का सूरज | Andhe Akash Ka Suraz

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Andhe Akash Ka Suraz by राबिन शॉ पुष्प - Rabin Sho Pushp

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा नाम : 23 ओर कुसुम सारी बातें सुनती है। गिरह बांधती जाती है । अब चलने का समय हो गया हैं। स्टेशन तक छोड़ने के लिए टमटम आ गया है । अनु सो गई हैं । वह पिता के पैर छूता है--“जल्दी हो अनु को भेज देंगे''*विता मत कीजिएगा 1 “स्कूल से जुड़ने के वाद, भला कोई छूटा है वेटे । पहली, फिर दूसरी, फिर तीसरी“*“आगे**और आगे***” इसके आगे ये कुछ नहीं कह सके । कुमुम ने पैर छूए तो वोले--“वेटी, मेरे बिस्तर पर सो रही है अनु । रोज़ मेरे साथ ही सोती रही उसे आहिस्ता से उठाना, जग जाएगी । बढ़ी कच्ची नींद है'**मैं रात में करवट भी लेता था, तो धीरे से “*” और उनकी आवाज़ भर्रा जाती है । दुमुम को लगा, उनके पाव भी बाप रहे हैं । बह विस्तर तक आई । अनु सो रही है दादाजी के तकिए पर | बह उठाने को होती है कि पिताजी कहते हैं--“बढ़ू, जल्दी करो ॥ गाही का समय हो रहा है** और हा, इसे तकिए की भी आदत है**'मैं तो यू ही सो लेता था***” अचानक कुसुम कहती है--/नद्ी बाबूजी, हम इसमे नहीं से जा रहे हैं। स्कूल में दो महीने वाद दाखिला द्वोगा, फिर ले जाएंगे***अनु के कपडे मैंने बिस्तर पर निकाल दिए हैं***” ओर वह सूटकेस लेने भीवर खली गई। जल्दी-जल्दी अनु के कपड़े मूटकेस से निकाल कर बाहर भा गई । वह कुछ नहीं समझ पाता है : ने ठागे में, ने ट्रेंड में, ने तब, जब कुसुम कहती है--“हम अनु को नहीं लाएंगे दो महीने बाद भी महीं।*” कभी नही **वे लोग उसे बहुत प्यार करते हैं ““मेरा क्या है, यही कह- कर संतोष कर लूी कि मैं सौतेसी मा हू'।ववच्ची को अलग रखता चाहती हूँ***” बस, उसे लगता है, उसी की तरह दुसुम भी बपरते भीदर कीर्ई लड़ाई लड़ रही है | धर पहुंचते पर, सोते से पढ़ते बढ़े सोचता है. ३




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