श्री योगवशिष्ठ - भाषा | Shri Yogawashishth Bhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
668
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| [_ झ्मीकिजी वोले--हे भारद्वाज ! मुनि शाहू ल विश्वामिन्
भें ऐप! कर नन्1 के ऐमा कहत ही मानो राजा दशरथ पर वच्नपात हो
1२ (| गया। वे मृवित होकर इब्वी पर गिर पढ़े। एक सुहत
£+ल्<1 पश्चात् जब उनकी मू्च्छा भड़ हुईं तब वे महान अधीर
४ होकर विश्वाधित्न से बोले--हे सुनीश्वर ! आपने यह क्या कहा है ९
# रामजी तो अगा क्वोरे है। फूलो की शय्या पर सोते हे। भला वे
अस्त्रतास्त्र को क्या जानें । अभी तो वे इस विद्या को सीखे भी
नहीं है । तब भला वे किप्ती युद्ध मे केसे जा सकते है ? हा, मेरा
वह राजकुमार जो अभी अंतःपुर में स्त्रियों फे ही पास बैठने योग्य
है और जिसने अभी तब सग्रामभूमि को अपनी आँखों से देखा
भी नहीं है ओर न कमी भृकुटी चढ़ाकर युद्ध ही किया है और
जिसके कमल जेसे हाथ हैं और जो शरीरसे अत्यन्त ही कोमल है, वह
राक्षसो के साथ युद्ध कैसे करेगा भला कही पत्थर और कमल से
भी युद्ध हुआ हे ? हे मुनीश्वर ! आपकी यह याचना उत्तम नही है।
क्योकि रामचन्द्र की अवस्था अभी केवल १६ वर्ष की हुई है। तब वे
संग्रामभूमि को कैसे जायेंगे । एक तो दश हजार वर्ष की आयु के
पश्चात् मुझे ये चार पुत्र प्राप्त हुये हें, उनमें रामजी मुझे प्राण से £
भी अधिक प्रिय हैं। सो मे उसे कैसे हैँ । हे सुनीश्वर ! रामजी के। &
तो मे अपने नेत्नों से एक पल भी पृथक नहीं करता | क्योंकि मेरा £
जीवन उसी के आधीन है। उसके विना तो में क्षण भर भी जीवित
नही रह सकता। यदि तुम राम को ले जाओगे ते निश्चय ही मेरी १
सत्यु हो जावेगी।
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