अमृत -ज्योति | Amrit - Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुदपरिचणादुभूदा सब्वस्स वि कामभोगबंधकहा ।
एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलभो विभत्तस्स ॥
सर्व ही लौकक कामभोगसन्वन्धी बंधको कथा तो सुननेमैं
आई है, परिचयमैं आई है, अनुभवम आई है, यातें सुलभ
है । बहुरि यह भिन्न आत्माका एकपणा कवहू श्रवणमें न आया,
तथा परिचयमैं न आया, तथा अनुभवमैं न आया, यातें केवल
एक यहही सुलभ नाहीं है ।
इस समस्त ही जीवलोकर्क कामभोगसंबंधी कथा है सो
एकपरा के विरुद्धपणातें अत्यन्त विसंवाद करावनहा री; है, तौऊ
अनन्तवार पहले सुननेमैं आई है बहुरि अ्रनंतवार पहले परिचयमैं
आई है, बहुरि अनंतवार पहले अनुभव आई है। कंसा है
जीवलोक ? संसार सो ही भया चक्र, ताका क्रोड कहिए मध्य,
ताविषे आरोपरण किया है स्थाध्या है । बहुरि कंसा है ? निरंतर
ग्रनंतवार द्रव्य क्षेत्र काल भव भावरूप परावतं जो पलटना
तिनिकरि प्राप्त भया है भ्रमण जाके। वहुरि कंसा है ?
समस्तलोकक्ूं एकछत्नराज्यकरि वशी किया तिसपणाकरि महान्
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