अमृत -ज्योति | Amrit - Jyoti

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Amrit - Jyoti by अमृतचन्द्र जी - Amritchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुदपरिचणादुभूदा सब्वस्स वि कामभोगबंधकहा । एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलभो विभत्तस्स ॥ सर्व ही लौकक कामभोगसन्वन्धी बंधको कथा तो सुननेमैं आई है, परिचयमैं आई है, अनुभवम आई है, यातें सुलभ है । बहुरि यह भिन्‍न आत्माका एकपणा कवहू श्रवणमें न आया, तथा परिचयमैं न आया, तथा अनुभवमैं न आया, यातें केवल एक यहही सुलभ नाहीं है । इस समस्त ही जीवलोकर्क कामभोगसंबंधी कथा है सो एकपरा के विरुद्धपणातें अत्यन्त विसंवाद करावनहा री; है, तौऊ अनन्तवार पहले सुननेमैं आई है बहुरि अ्रनंतवार पहले परिचयमैं आई है, बहुरि अनंतवार पहले अनुभव आई है। कंसा है जीवलोक ? संसार सो ही भया चक्र, ताका क्रोड कहिए मध्य, ताविषे आरोपरण किया है स्थाध्या है । बहुरि कंसा है ? निरंतर ग्रनंतवार द्रव्य क्षेत्र काल भव भावरूप परावतं जो पलटना तिनिकरि प्राप्त भया है भ्रमण जाके। वहुरि कंसा है ? समस्तलोकक्‌ूं एकछत्नराज्यकरि वशी किया तिसपणाकरि महान्‌ १६




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