धरती के देवता | Dharati Ke Devata

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Dharati Ke Devata by सम्पतलाल पुरोहित - Sampatalal Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१ कटवा दी ) काम वन गया । ठीऊ है ठीक है, देखता हँ--यह तो फरना ही पड़ेगा ।” पटवारी फिर बोले-हों, आपको इससे फितना रुपया लेना है ह “यही कोई पन्दरद् सी ।” घनराज बोला ! बनराज का हाथ दात्र कर पटवारी बोले--“आपने भी कमाल कर टिया सेठ साहेव । यह तो क्या, इसके वेटे के वेदे भी नहीं चुका सेंगे। लेकिन इस साल आपने हमारे साथ पाल चली--प्रा हिस्सा नहीं दिया और जो देने का वायदा जिया सो अभी तऊ जेप में नहीं आया | भडसके लिए आपको परयराने की जरूरत नहीं है, पटवारी साहेब | आपके लिए रुपए जया, ससरी जान हाजिर है 1 “गही तो आप लोगों मे सासियत हें--जान हाजिर कर #गे, दाम हाजिर नहीं करेंगे ।” इतना कर पठचारी ही-ही करके हसमे लगे। इतने ही में पुन था लेकर आ गया। सेठ ने गरज फर फटा -'श्रो काठ के उल्लू । तुमे पानी लाने के लिए कहा था न । पहले चा ओर पीछे पानी, उल्टे फ्हीं के, काम चोर ।!”! सेठ जी, में क्या करूँ? सिठानी जी मे मना कर दिया था | वोलीं--पानी फ्यों पियेंगे, चा पियेंगे पटवारी साहेन। सापरदार, जो पानी दिया । सो में क्षप ग्ह गया ।' “अच्छा, '्न्छा, मारो गोली पानी को, चलो 'अय चा दी पी लें। जारेजा, फाम कर अपना । हों, जरा पूरियों नरम मरम सिक्‍्याना;




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