श्री मथुरेश प्रेम संहिता | Shri Mathures Prem Sanhita

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Shri Mathures Prem Sanhita by मथुराप्रसाद - Mathuraprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४६७७७७७४७७७४७/७७४०वर्न 3 0 लििकन+ सम 8. जा जिक अल्ीजधक- 225७ ५४,०३८ _ ६ | 1, 7०४६ ०४०71 पर का ज हि भा प्र ४ # ीमथुरेशपेमसहिता वथमभांग # (११ ) ॥ पहिला सत्सक्ष, वैराग्य उपदेश ॥ पहात्मा-छनो सेठ ! घन दोलतकी बडाई तुमने की हमने भी सुनी परन्तु जरा इसबात को विचारों कि दोऊत के के पेदाकरने मे कितना कंछ ओर रक्षा मे केसी आपत्ति है | धन कमाने में सनुण्य केली आपदाओं को सरपर छेता है भर पचक्कर 5 खोदेता है पर्म ईमान का कुछनी वियार मालके छालच मे नहीं रहता है | मालवारों के नखरे दया धक्के तक सहता है। जब कुछ रुपया जमा ता है तो निन्‍्यान्वे के फेरस पडकर उसके बढाने की चिन्ता में दिनरात व्याकुछ बना रहता है' और जब बडी भोगकर दशा बीस हजार जमा कर पाता है तो उसकी रक्षा करना कठिन होजाता है। चोर, डाकू, ठग शादि के पंजों ले निकलना ओर दीकतकों स्थिर रखना रु कठिन मज्ञर आता है। कभी खोटी संगतर्मे फैसकर पजी खोवेठता है कभी कप्त सन्तान के हाथले घनका नाश (हे छिन लंगुर पनमाल है, कम देत नहीं साथ | एक हाथरें कालती, आज दंसरे हाथ ॥ इस परभणी अधिक यह कि एक दिन अपने सारें जनम की कमाई छोड़कर दुनियां ले चलदेना पड़ता है ॥ 1 पद ॥ चर्चछ सायामें चित्त माया, यही इस कोयाका कतंब जाया | आवतर्स अतिही दुखगाई, रखावत में बहु सेकट माना ॥




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