श्रीमथुरेश महोत्सव पद संग्रह | Shrimathuresh Mahotsav Pad Sangrah

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Shrimathuresh Mahotsav Pad Sangrah by मथुराप्रसाद - Mathuraprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) जलारू क्‍या है कि कहिये उसे सरापा नर 1 उसीके नूर का दुनिया में है ये सारा जृहूर ॥ ' वोही जीवों. की. जीवन' अधांर ॥ लहेती० नाशा जडाऊ पालने ।'में मा उसे झुलाती है । वो मंद मद; कंभी, प्यारी सुसक्रात्ती है - जिधर को हंस के वो प्यारी:,नजर उठाती: हैं । हो बनाके ?दासीं “हिये की' “की ... खिंलाती है. ॥ / किया “मथुरा ने/विल'की निसार ॥+डिंत्री० ॥ीश॥ । . हे ध्थ डे हब हो ह कु हे ध का 1५722 010 अर र न ह [ तथा दे आइ बदरियां कर्जारयां रीमुइ॒यां इसकेवजनपर । 1 * (८) छाई नगारिया सुधरियां बयां ॥ १--सज़ी बुषभान की नगरी , है उमगी सुन्दरी सगरी । मठकती नाचती गाती , चली महलों में इतराती ॥ वोलें दिखादी दुल्शारियां- बधेयाँ ॥ छाइ० ॥ २-- खा जब लाडिली छब कौ ,हुई बस मर्च्छा सब कौ । वो बाली. होगा में आके , ये: बानी उठके घबराके ॥ छागे न याकी ,नजरियागुशग्रा॥ छाइ०, ॥ २-:गगनसे हैं समन, बरसे, मगन नर डेंवंगण, दरसे । ४ ये श्यामा:आदि कारन है 2 यही जिज बन बिहारन है।॥ ॥ । मथुरा उमा कीये/दस्थिहै:गुइयां जो. छोड,




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