काव्य - कानन | Kaavya Kaanan

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Kaavya Kaanan by राजा चक्रधर सिंह - Chakradhar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १ देव सबे सुखदायकें संपंति संपवि सोई जुं दंपविं जोरी । दंपति दीपतिं प्रेम प्रतीति प्रेतीति की प्रीति संनेह निचोरी ॥ प्रीति तहाँ गुन रीति विचार बिचार की बानी सुंधारस बोरी । बानी को सार बखानों सिंगार सिंगार को सार किसीोर-किसोरी ॥




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