स्त्रीत्व के बंधन | Stritw Ke Bandhan

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Stritw Ke Bandhan by आशा अरोड़ा - Aasha Aroda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आयोजन किये थे । ये वर्णत सुनकर उसकी अपने पिता मे आस्था जागती थी साथ ही अपने महत्त्व व सार्थकता का बोध होता था । यहो भावनाये अपनी पुत्री को महसूस कराने की इप्टि से सयोगिता चाहती थी कि अगर उसकी पुत्री हो तो उसका जमोत्सव सम्पन्न क्या जाये। बच्ची के जन्म के आधा घन्टा बाद तक सयोगिता वो डावटर के आदेश पर लेबर रूम में ही रसा गया कि कही कोई प्रसवोत्तर उलभन न हो जाये । सयोगिता का पोर पोर दुख रहा था, उसने अपनी आँखे बद कर ली झ्रीर शादी से श्रद तक के समय की घटनायें एक-एक कर एक स्वप्न की तरह उसे दिखने लगी, यद्यपि वह नींद में नही थी। वह सुन सकी कि कब बच्ची को कॉटज वाड में भेजा गया । आधे घटे की अवधि पूरा होने पर नस तथा श्रन्य सहायको ने स्ट्रेचर पर उतरने मे उसकी सहायता की तथा उसे कॉटेज वाड में पहुँचाया गया । वहा पर थे श्री रामनाथ, जो नवजात बच्ची को गले से लगाय बैठे थे । बीच-बीच में वे बच्ची के माथे पर चुबन श्र कित कर देते थ। सयोगिता को बिस्तर पर लिठाया गया । रामनाथ सयोगिता के निकट कुर्सी पर बैठ गय । गहरी इृतअंता शोर स्नेह के साथ उन्होंने सपोगिता को देखा श्रीर उसका हाथ थाम कर बोले, तुम्हारा बहुत आ्राभारी हूँ में ! क्तिनी प्यारी बच्ची है । सयोगिता भावविद्धल हो रही थी । भरे गल से उसने कहा, कहीं लड़बी होने का दुख तो नही आपका ? ” रामनाथ के स्नेहसिक्त चेहरे पर एक शिकन उभरी । “क्या वात करती हो सयोगिता !” भगवान ने इतनी स्वस्थ व सुन्दर कन्यारत्न दी है हमे ” गोद और बाहे पसार कर इसका स्वागत करता हूँ में ! और तुम भी कभी ऐसी बात दिल मे न लाना । इसका जमीत्सव भी घूमधाम से करना है ।” उन्होंने बच्ची के माथे पर एक गहरा चुम्बन लिया, सयोगिता ने उनका हाथ कसकर पकड लिया और मुस्कराते हुए आखे वद कर ली । उसे लगा कि यह एक परिपुण क्षण था कि उसका स्नेंही पत्ति नवजात बच्ची को अपन क्लेंजे से लगाये उसके सामने बैठा है और वही वात कह रहा है जो स्वय उसके दिल में थी । यद्यपि सयोगिता तो ज'मोत्सव की भावनात्मक तथा रामनाथ सामाजिक उपयोगिता के कायल थे | सयोगिता ने अपनी भ्राखे बद की और सो गयी । सयोगिता ने आखे खोली तो श्री रामनाथ ने पूछा “इसका जमो- त्सव कसी खास दिन करना है या मम्मी के आने पर ?”




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