श्रीमद अनन्त शतकम् | Shrimad Anant Shatkam

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Shrimad Anant Shatkam by लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु '- Laxminarayan 'Sudhanshu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रसत्तावना सचिदानन्द आनन्दकर मगवान श्रीक्षप्णचन्ध “महाराज़्क्ा .. अघठ घटना पदु एवम्‌ अकथ कथना चमत्कृति पूर्ण बड़ी विचित्र शक्ति है वह जिस बातकों चाहता है उसके सारे उपकरणोंको अनायास ही उपस्थित कर देता है उन्हें परस्पर संगठित होनेमें प्रथलकी अणुमात्र भी अपेक्षा नहीं रहती। मेरे लिए कुमर गजाघरजीके यहाँ। जगह है इस कारण में श्रीनिवास मिलमें उनसे मिलने व कपड़ा बुननेकी बड़ी मिलोंके यांत्रिक चमत्कार देखने चढा जाता हूँ | एक दिन वहीं मुझे उनके पिता श्री दजारी मछजी सोमाणी और राम दयाहुजी सोमाणी भी मिछ गये | आपके कथनमें मुझे वैकुण्डबासी श्री ग्रतिकादि भयंकर मठाधीश्वर “जंगढ्‌ गुरुके औमद्‌ अनस्ताचार्य्यजी मद्ाराजके लिये वह अपार श्रद्धा झछकी कि--मैं अपने सारे कार्मोको जहॉँकी तहाँ छोड़कर इसकी दिन्दी थीका छिखने वैठ गया ) टीका तैयार होते ही सोमाणी वन्धुओंने इसके छपनेका सारा प्रबन्ध तत्काछ करा दिया । इस शतकको इन्हींकी प्रेरणासे सदाचार ग्रन्थमालाके प्रवर्तक हिन्दी संछ्तके स्वर्तत्र लेखक वैयाकरण केसरी कबरि सम्राठ ब्याख्यान मार्तण्ड आदि विविधोपाधि विभारित पं- ग़म नारायण शर्म्मा नागनोछीने छिखा था | इस बातका कथन उन्होंने इसी झतकके अन्चमें कर दिया है | कबिने अपने मूछ प्रन्यकों वेकुण्ठवासी मद्गाराजके छी चरणोंमे समर्पित करके उनपर अपनी द्वार्दिक श्रद्धा व्यक्त की है ।




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