साहसी गाथाएं | Sahasi Ghathaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हो गया।
यह देख कर सेवक काँप उठा । उसने रानी का सिर अपने
हाथों मे उठाया और डगमयाते कदमों के सहारे वह चूड़ावत
की शोर चल दिया ।
' ज्यों ही सेवक ने चूडावत के सामने रानी का सिर रखा
उसकी श्राँखें फटी-की-फटी रह गई | उसका हृदय काँप उठा।
होंठ फड़फड़ाये । वोला--“यह क्या है सेवक”/
सेवक की आँखें आँसुप्रों से तर थी। वीर रानी का सिर
चुड़ावत के हाथ में देते हुए उसने कहा--“लीजिए, विश्वास की
निशानी । रानी अपना धर्म-कत्तंब्य पूरा कर चुकी । श्रव श्राप
श्रपना कर्तव्य पूरा कीजिए 17
उसी क्षण चूड़ावत की आाँखों से झ्ाँमू की दो बू दें हाडी
रानी के शीश पर टठपक पड़ीं। वह पश्चाताप करने लगा।
और उसी समय उसमें कत्तेव्य की भावना ने उम्र रूप धारण
कर लिया | उसने अपनी प्रिय पत्नी का सिर गले मे लटका
लिया और युद्ध के मंदान मे कूद पडा ।
बादशाह ओऔरंगजेव श्रौर सरदार चुूड़ावत में भीषण युद्ध
हुआ । अन्त में औरंगजेब को हार माननी पड़ी । उस समय
राणा जी चंचल कुमारी के साथ उदयपुर लौट चुके थे ।
चूडावत ने औरंगजेब से वचन लिया कि वह कभी भी
मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा। झौर जैसे ही चूड़ावत वापिस
लौटा, मुगल सेनापति ने उसका सिर घड़ से श्रलग कर दिया
चूडावत वीरगति को प्राप्त हुआ ।
ऐसी थी बीर वीरांगना हाड़ी रानी जिसने अपने पति को
कत्तेव्य पथ से तनिक भी विचलित नहीं होने दिया। मोह को
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