हरिवंश पुराणु | Harivansh Puranu

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Book Image : हरिवंश पुराणु  - Harivansh Puranu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु (न हा पुष्पदन्त _. [इस महाकविंका परिचय सबसे पहले मैंने अपने “ महाकबि पुष्मदन्‍न्त और डनका महापुराण . - शीर्षक विस्तत लेखमें दिया था । परन्तु उसमें कविके समयपर कोई विचार नहीं किया जा सका था। उसके . - थोड़े ही समय बाद अपम्रेश भाषाके विशेषज्ञ प्रो० दौराछालजी जैनने “ महाकवि पुष्पदन्‍्तके समयपर विचारे शीर्षक छेख लिखकर उस कमीकी पूरा कर दिया ओर महापुराण तथा यशोधरचरितके अतिरिक्त कविकी .- तीसरी रचना नागकुमास्वरितका भी परिचय दिया | फिर सन्‌ १९२६ में कविके तानो अंर्थका परिचय 5 समय-निर्णयके साथ मध्यप्रान्तीय सरकार द्वारा प्रकाशित * केट्लोंग आफ मेनु० इन सी० पी० एण्ड बरार में प्रकाशित हुआ | इसके बाद पे* जुगलकिशोरजी मुख्तारका “ महाकवि पुष्पदन्‍्तका समय शॉ्षेक ढखें .. प्रकट हुआ, जिसमें कॉघछाके भंडारस मिली हुई यशोधरचरितका एक प्रतिक कुछ अवतरण दकर यह [सद्ध ३ 20 ५ > किया गया कि उक्त काव्यकी रचना योगिनीपुर ( दिल्ली ) में वि० सं० १३६५ मे हुई थीं, अतः 4९५. -“ पुष्पदन्त विक्रककी चौदहवी शताब्दिक वल्लन्‌ हैं। इसपर प्रो० हीरालाछजीने फिर “ महाकाबे पुष्दन्तका “- समयें ” शीर्षक लेख लिखकर बतलाया कि उक्त प्रतिके अवतरण अंथके मूठ अश न होकर म्रक्षित अश जान « पड़ते हैं, वास्तव कविका ठीक समय नवीं शताब्दी ही है | इसके बाद १९३१ में कारंजा-जेन-सीरॉज मे. . . यशोधरचरित प्रकाशित हुआ और उसकी भूमिकाम डे।० पी० एल० वद्रन काॉवलाका प्रातिक उक्त अशका “- और उसी प्रकार अन्य दो अंशोंको वि० से० १३६५ में कण्डड्नन्दन गन्धवद्राश ऊपरस जोड़ा हुआ “- बहुत-सी नई नई बातोंका सुझे पता छगा है, वे सब भी इसमे शामिल कर दी गई हैं। कविके स्थान, कुछ, घम _ अपाध्यायकी सूचनाओं और सम्मतियोंसे छेखकने यंथेष्ट छाभ उठाया है। ] अपअश-साहलल्‍्थ ५ महाकवि पुष्पदन्त अपभ्रेश भाषाके कवि थे। इस भाषाका साहित्य ज॑न-पुस्तक- __ भंडारोंमें मरा पड़ा है। अपम्रंश बहुत समय तक यहाँको छांक-माषा रहा हैं आर इ्सका 'कन्‍लकबभ+ सन कभम॒रकल-न्‍कनन नल ले +५+++ ३. जे आम 8 ... २ जेनसाहित्य-संशोधक खंड २ अंक २। .. «३ जैनजगत्‌ £ अक्टूबर सन्‌ १६४९४३। .. », ४ जैनजगत्‌ १ नवम्बर सन्‌ ६३३६ | 5... १ जैनसाहित्य-संशाधक खंड २ अंक १ ( सन्‌ १९२४ )। . सिद्ध कर दिया ओर तब एक तरहसे उक्त समयसम्बन्धी विवाद समाप्त हो गया | इसके बाद नागकुमास्चरित : और महापुराण भी प्रकाशित हो गये आर उनको भूमिकाओंमें काविके सम्बन्धी ओर भी बहुत-सी ज्ञातव्य.. ... बातें प्रकट हुई । संक्षेपमं यही इस लेखको पूव॑पीठिका है, जो इस विषयके विद्यार्थियोंके लिए उपयोगी... . समझ कर यहाँ दे दी गईं है । प्रस्तुत लेख पूर्वोक्त समी सामग्रीपर लक्ष्य रखकर लिखा गया है और इधर जे... - आदिपर बहुत-सा नया प्रकाश डाला गया है। ऐसी भी अनेक बात हैं जिनपर पहलेके लेखकीने काई चर्चो...| नहीं की है। मैंने इस बातका प्रयत्न किया है कि कविके सम्बन्धकी सभी शातव्य बातें क्रमबद्ध रूपसेहिन्दीके पाठकौके समक्ष उपात्यित हो जाये । इसके लिखनेमें सजनोत्तम ग्रे० हीरालाठ जेन और डा० ए० एन० साहित्य भी बहुत छोकप्रिय रहा है । राजदरबारोंमें मी इसकी काफी ग्रतिष्ठा थी । राजशेखरकी _ काव्य-मीमांसासे पता चलता है कि राजसभाओंमें राजासनके उत्तरी ओर संस्कृत के, पूर्वकी ओर प्राकृत कवि और पश्चिमकी ओर अपश्रंश कबियोंकों स्थान मिछ्ता था। पिछले 27: २७-३० वर्षोसे ही इस भाषाकी ओर विद्वानोंका ध्यान आकर्षित हुआ है और अबतोी




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