हरिवंश पुराणु | Harivansh Puranu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
74 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु (न हा पुष्पदन्त
_. [इस महाकविंका परिचय सबसे पहले मैंने अपने “ महाकबि पुष्मदन्न्त और डनका महापुराण
. - शीर्षक विस्तत लेखमें दिया था । परन्तु उसमें कविके समयपर कोई विचार नहीं किया जा सका था। उसके
. - थोड़े ही समय बाद अपम्रेश भाषाके विशेषज्ञ प्रो० दौराछालजी जैनने “ महाकवि पुष्पदन््तके समयपर विचारे
शीर्षक छेख लिखकर उस कमीकी पूरा कर दिया ओर महापुराण तथा यशोधरचरितके अतिरिक्त कविकी
.- तीसरी रचना नागकुमास्वरितका भी परिचय दिया | फिर सन् १९२६ में कविके तानो अंर्थका परिचय
5 समय-निर्णयके साथ मध्यप्रान्तीय सरकार द्वारा प्रकाशित * केट्लोंग आफ मेनु० इन सी० पी० एण्ड बरार
में प्रकाशित हुआ | इसके बाद पे* जुगलकिशोरजी मुख्तारका “ महाकवि पुष्पदन््तका समय शॉ्षेक ढखें
.. प्रकट हुआ, जिसमें कॉघछाके भंडारस मिली हुई यशोधरचरितका एक प्रतिक कुछ अवतरण दकर यह [सद्ध
३ 20 ५
> किया गया कि उक्त काव्यकी रचना योगिनीपुर ( दिल्ली ) में वि० सं० १३६५ मे हुई थीं, अतः
4९५.
-“ पुष्पदन्त विक्रककी चौदहवी शताब्दिक वल्लन् हैं। इसपर प्रो० हीरालाछजीने फिर “ महाकाबे पुष्दन्तका
“- समयें ” शीर्षक लेख लिखकर बतलाया कि उक्त प्रतिके अवतरण अंथके मूठ अश न होकर म्रक्षित अश जान
« पड़ते हैं, वास्तव कविका ठीक समय नवीं शताब्दी ही है | इसके बाद १९३१ में कारंजा-जेन-सीरॉज मे.
. . यशोधरचरित प्रकाशित हुआ और उसकी भूमिकाम डे।० पी० एल० वद्रन काॉवलाका प्रातिक उक्त अशका
“- और उसी प्रकार अन्य दो अंशोंको वि० से० १३६५ में कण्डड्नन्दन गन्धवद्राश ऊपरस जोड़ा हुआ
“- बहुत-सी नई नई बातोंका सुझे पता छगा है, वे सब भी इसमे शामिल कर दी गई हैं। कविके स्थान, कुछ, घम
_ अपाध्यायकी सूचनाओं और सम्मतियोंसे छेखकने यंथेष्ट छाभ उठाया है। ]
अपअश-साहलल््थ
५ महाकवि पुष्पदन्त अपभ्रेश भाषाके कवि थे। इस भाषाका साहित्य ज॑न-पुस्तक-
__ भंडारोंमें मरा पड़ा है। अपम्रंश बहुत समय तक यहाँको छांक-माषा रहा हैं आर इ्सका
'कन्लकबभ+ सन कभम॒रकल-न्कनन नल ले +५+++ ३.
जे आम 8
... २ जेनसाहित्य-संशोधक खंड २ अंक २।
.. «३ जैनजगत् £ अक्टूबर सन् १६४९४३।
.. », ४ जैनजगत् १ नवम्बर सन् ६३३६ |
5... १ जैनसाहित्य-संशाधक खंड २ अंक १ ( सन् १९२४ )।
. सिद्ध कर दिया ओर तब एक तरहसे उक्त समयसम्बन्धी विवाद समाप्त हो गया | इसके बाद नागकुमास्चरित
: और महापुराण भी प्रकाशित हो गये आर उनको भूमिकाओंमें काविके सम्बन्धी ओर भी बहुत-सी ज्ञातव्य..
... बातें प्रकट हुई । संक्षेपमं यही इस लेखको पूव॑पीठिका है, जो इस विषयके विद्यार्थियोंके लिए उपयोगी...
. समझ कर यहाँ दे दी गईं है । प्रस्तुत लेख पूर्वोक्त समी सामग्रीपर लक्ष्य रखकर लिखा गया है और इधर जे...
- आदिपर बहुत-सा नया प्रकाश डाला गया है। ऐसी भी अनेक बात हैं जिनपर पहलेके लेखकीने काई चर्चो...|
नहीं की है। मैंने इस बातका प्रयत्न किया है कि कविके सम्बन्धकी सभी शातव्य बातें क्रमबद्ध रूपसेहिन्दीके
पाठकौके समक्ष उपात्यित हो जाये । इसके लिखनेमें सजनोत्तम ग्रे० हीरालाठ जेन और डा० ए० एन०
साहित्य भी बहुत छोकप्रिय रहा है । राजदरबारोंमें मी इसकी काफी ग्रतिष्ठा थी । राजशेखरकी _
काव्य-मीमांसासे पता चलता है कि राजसभाओंमें राजासनके उत्तरी ओर संस्कृत के,
पूर्वकी ओर प्राकृत कवि और पश्चिमकी ओर अपश्रंश कबियोंकों स्थान मिछ्ता था। पिछले 27:
२७-३० वर्षोसे ही इस भाषाकी ओर विद्वानोंका ध्यान आकर्षित हुआ है और अबतोी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...