कादम्बरी कथामुखम् | Kaadambari Kathaamukham

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Kaadambari Kathaamukham by राजेंन्द्र मिश्र - Rajendra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । २१ सदृश ही प्रतीत होते थे। काव्यलक्षण निर्माताओं की मान्यता के अनुसार उनकी इस रूप में अवस्थिति स्वंथा स्पृहणीय है । क्योंकि तत्कालीन समाज के लिए मधुर रस विन्यास के साथ ही साथ कठोर (कु) बेदुष्य रस की भी पूर्ण अपेक्षा थी | अन्यथा उन्तकी दृष्टि में काव्य नीरस रहता है । कादम्बरी के कथानक में विचित्र अलौकिक घटनाओं के समावेश की भी पाश्चात्त्य विद्वानों ने समालोचना की है । जन्म-जन्मान्तरों की कथाएँ, मनुष्य का पशु-पक्षी बन जाना आदि आज के युग में आश्चर्यजनक-सा लगता है, किन्तु पुनर्जेन्म तथा देवी-देवताओं की दशा पर श्रद्धा रखने वाले भारतीय मतीषियों को इस प्रकार की अलौकिक घटनाएँ विचित्र नहीं लगती हैं तथा वे उनके विश्वास व निष्ठा में वृद्धि करती हुई दिखलाती है । पात्र और चरिन्न-चित्रण महाकवि बाणभट्ट को पात्रों के संचयन तथा उनके कुशल चरित्र-चित्रण में पूणं सफलता मिली है । उन्होंने विभिन्न प्रकार के पात्रों का सरस व सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है । उन्होंने जहाँ राजकुमारों, राजकुमारियों, महारानियों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, बुधजनों को अपने काव्यों में पात्र के रूप में चित्रित किया है वहीं ऋषि, मुनि व अन्य असभ्य लोगों को भी पात्रत्वेन अद्भीकार करने में शिझक नहीं खायी है। उन्होंने केवल लौकिक पात्रों का चित्रण नहीं किया है--अपितु उनके गद्य ग्रन्थों में दिव्य पात्रों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है; जिनका उन्होंने सफलतापूर्वक चित्रण किया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि महाकवि बाण ने अपने काव्यों में उत्तर, मध्यम तथा अधम सभी श्रेणी के पात्रों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है । यंदि एक ओर वे राजा शुद्रक का वर्णन करते हुए तृष्ति का अनुभव नहीं करते हैं तो दूसरी ओर वे चाण्डाल- कन्या का विस्तारपूर्वक वर्णन प्रस्तुत करते हैं। यहीं कवि की कसौटी है जो कि एक पक्ष विशेष की ओर नहीं मुड़ती है अपितु स्वाभाविक रूप से प्रत्येक पक्ष का रूप प्रस्तृत करतीहै। प्रभाकरवरधेन, ह॒षंवर्धेन ( हे ) , राज्यवर्घेन,राज्यश्री , यशोमती, दिवाकरमित्र आदि हर्षचरित आख्यायिका के प्रधान पात्र है जिनका बाणभट॒ठ ने विशद चित्रण प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत सन्दर्भ में हम कादम्बरी




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