पाइअ - लच्छीनाममाला | Paia Lachchhinamamala

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Paia Lachchhinamamala by महाकवि धनपाल - Mahakavi Dhanpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ जैसे आज्ञांकित पुत्र के होने पर भी आप चिंतित क्यों हैं? अपने विषादका कारण बताइए. पिताने धननिधिकी तथा उसके संकेत वगैरह की सब बात बता दी और कहा कि धननिधिको बतानेवाले मैनाचार्य तुम दो भाइयोमें से एक भाईको मांग रहे हैं और मैंने ऐसा उनको बचन भी दे दिया है. तो हे पृत्र | अब तुम मुझको ऋणमुक्त कर दो. पिताके इस वचनको सुनकर धनपालकों बडा गुस्सा आया और उसने बाप को थोडा डांटा भी. धनपालने कहा कि हम छोग संकाश्यके रहनेवाले तथा चारों वेदों को जाननेवाले उत्तम ब्राह्षण हैं. में राजा भोज का बालुमित्र हैँ और बड़ा प्रतिहित ब्राह्मण हूं. ये जैनमुनि पतित शूद्रों के समान हैं, उनकी ऐसी निंदित प्रतिज्ञा के खातिर मैं अपने पूर्वजों को नरकमें डालना नहीं चाहता. आपका यह कुव्यवहार है और सजनोंसे निंदनीय है अतः मैं आपके कथनानुसार नहीं कर सकता. आप जानें ब आपकी प्रतिज्ञा जाने, इस श्रकार पिताका अपमान करके धनपाछ वहांसे अन्य जगह' चला गया और पिता सर्वदेव निराश हो गया तथा उसकी आंखोंसे आंसू टपकने लगे. इतने में घनपारुका छोटा भाई शोभन वहां आ गया. पिताने उसको जो बातें धनपाछ्से हुई थी सब कह दी और धनपालका डांटना भी सुना दिया. और अतमें कहा कि तुम तो अभी बालक ही अतः हमारी किसी प्रकारकी सहायता नहीं कर सकते. तो तुम जाओ और हम अपना किया आप ही भुगत ढेंगे. तब शोभनने अपने पितासे कहा कि आप मत धबड़ाइए, में जरूर आपका वचन पार्दगा. मेरा बडा भाई राजमान्य है, कुट्ुंब के सारे भार को उठाने को भी वह समर्थ है, वह बड़ा पंडित भी है अतः उसने आपको कुछ




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