मेरे भटकाव | Mere Bhatakav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरे भटकाव / 19
--चारों तरफ से और सब तरह के ही लोग आते थे--सा मान्य, भुणी और
प्रतिष्ठित सभी--हिन्दू-मुस्लिम, पारसी । गुजरात से बहुत बड़ा जत्या आया था
भौर उसमें शंकरलाल द्वारकादास पारिख और हरिलाल हरजीवनदास नारियल
वाला के नाम मुझे याद हैं। नारियलवाला उस वक्त असैम्बली के सदस्य थे।
रविशंकर महाराज भी शायद थे। एन० एस० वरदाचारी और के० सन्तानम
दक्षिण से आये थे । मुझे लगता है कि उस सत्याग्रह में भाग लेने वालों में शायद
पूरा का पूरा सोसायटी का 'स्पैक्ट्रम' आ जाता था । छायद ही कोई वर्ग बचा हो ।
सेतीहर थे, मजदूर थे, डाक्टर थे, वकील थे और अच्छे व्यापारी भी थे। चारों
ओर से लोग उमड पडे थे। मैंने स्वयंसेवक एकत्र करने का काम थोड़ा-बहुत किया
था इस समय मे, जंसे मैं इनके लिए बैतूल गया और देखा कि यदि सौ स्वयसेवकों
की आवश्यकता है तो दुगने, चोगुने प्रस्तुत थे कि हमको भी अवसर दिया जाये।
उत्माह का यह हास था ।/
-+ जब आप लोगों को भर्ती करते थे तो क्या तथ्य आप लोगों के सामने
रहते थे ?*
+-+'भण्ड के बारे में स्थिति थी ही । लेकिन जो लोगों का जत्या जाता था
सिविल लाइस्स में ऋण्डा लेकर तो सिरे पर ही पुलिस के सिपाही मिलते और
उन्हें गिरफ्तार कर लेते । गिरफ्तारी के लिए जाने वाले लोगो को समझाया जाता
था कि देखो, जेल में कष्ट हो सकता है, गोलो भी चल सकती है, फांसी भी लग
सकती है, वया हो सकता है इसका कोई अनुमान नहीं है । पर हमारा हक है कि
हम अपने नगर में अपना भण्डा ले जा सकें। अगर इस हक को नही माना जाता
है तो जीवन नाहक हो जाता है। उस हक को जान देकर भी प्रतिष्ठित करना
है। यह हमारी लडाई है। इसमे अगर तुमको पबका. विश्वास हो और तुम
स्वेच्छा से सब कष्टो को स्वीकार कर सको, बरदाश्त कर सको, तब तुमको जाना
भाहिए। अन्यथा पीछे रह कर भी दूसरी तरह के काम कर सकते हो। यह स्पप्ट-
तया सबको बतला दिया जाता था।
भुझे याद है कि पंजाब वाले के० सन््तानम आए थे। उन्होने एक व्यक्ति की
बहुत प्रशंसा की । कहा कि इसको कुछ भी कहने-समझाने की आवश्यकता नहीं
है। नाम उनका नहीं बता सकेगा, वे अभी है। पर जेल जाने पर भाफो मांगने
वालों में दिखाई दिए। यह सब था, पर कुछ लोग, खासकर वहां महाराष्ट्रीय
जन जैसे माधव श्रीहरि अणे, भोरेश्वर वासुदेव अभ्यंकर, चोलकर, मुंजे आदि
विरोध में थे । थी अभ्यकर और बणे से मेरी बात हुई, और वे काफी हल्के ढंग
से इस बारे में सोचते ये । एक बात ओर श्ञायद उल्लेखनीय मान ली जाए। डा०
केशव बलिराम हेडगेवार जो बाद मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक बने,
मन् 1921 में कांग्रेस में थे । मुझ्के याद है कि मेरे प्रति बहुत भच्छे भाव रखते भे
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