विषाक्त प्रेम | Vishakt Prem

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Vishakt Prem by विन्ध्यवासिनी प्रसाद - Vindhyavasini Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शंध . धनिष्ठना ! छ्लोशिर चुपचाप खुनयनीकी ओोर देखता रहा । सुनयनीने उत्तर दिया-बैटा, इसमें राग करोकी फौत चात है। छोटा पृत्र माताको सदा सबसे प्यारा द्वोता है । शिशिर आननन्‍्दास्गतसे नहा उठा। उसका. अड्भू प्रत्यड्ू आनन्दसे सरायोण दो गया, उसको प्रतीत दोने छगा मानों अभी 'माताकी फ्लोसमें जन्म लेकर उसने अपने जन्मजन्मान्तरकी, आस मिटा लो है । है रजत--(हंसकर) फिर अफेले शिशिण्को ही खानेको दो॥। मैंतो शिशिर्के दी घरसे डटकर पा आयाह। मुम्े परवा क्या है शिशिरने देंघा कि खुनयनी दो थालियोंमें अनेक प्रकारफे सुस्वादु व्यज्षन सजाकर छे आयी । शिशिर उदास मन थोला-- मैया, मैंने तुम्हें पया माल चमाया जो तुम्दारा पेंट फूला है। ' खुनयनीने शिशिरफी तरफ देंपा, उसका मु ६ उदास था,. उसने रजतसे कद्दा-तुर्हें फिर खाना होगा। शिशिर अपैला- कैसे घायगा।! शिशिरने नछ्त होकर कट्दा--मुपै इस वक्त खानेफकी आदत नहीं है मा! इससे में कुछ नहीं खाऊंगा। सुनयनीने सामने सीज्य पदा्थे रखते रखते फद्दा--चेटा, आक दिन असमयपर छालेनेले बीमार नहीं पड जाबोगे । शिशिर--अमी भोजन कर लेंगे तो रातको फिर कुछ छ , खाया ज्ायगा। के




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