संस्कृतकलशा सहित नाटक समयसार | Sanskritakalasha Sahit Natak Samayasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
622
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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८
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कविवर बनारसीदासजी | भर न
बन
छोड़े दिया और वे विपुल सम्पत्तिके अधिकारी होकर फिर जोौनपुरमें वहँकि
प्रसिद्ध धनिक छाछा रामदासजी अंग्रवार्ल के साथ सझेमें जवाहिरातकां
धंधा करने लगे। ः '
संबरत् १६३५७ में उनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ पेर्तु वह आठ दस दिल
ही जीवित रह सका। थोड़े दिन पीछे ख़रगसेनजी पुत्र-छाभकी इच्छासे
रोहतकपुरकी सतीकी यात्रा करनेको सकुटुम्ब गये । परन्तु मार्गमे चोरोंने
सर्वस्॒ छूट लिया, एक कोड़ी भी पासमें न रही, बडी कठिनतासे घर
जछोटकर आये | कविवर कहते हैं-.-
गये हुते मांगनकी पूत | यह फल दीनों सती अझ्त |
प्रगट रूप देखें सब सोग | तऊ न समुझें मूरख छोग ॥ .,
संवत् १६४३ में खरगसेनजी पुत्रछाभकी इच्छासे फिर सतीकी यात्राको
सकुटुम्ब गये और सकुशरू लौट आये, तथा थोड़े दिनके पश्चात् इनकी
मनोकामना भी पूर्ण हो गई । आठ वर्षके पश्चात् पुत्रका मुख देखा, इसलिये
विशेष आनंद मनाया गया। पुत्र॒का जन्मकार और नाम नीचेके पद्मसे
प्रगठ हीगा। ;
सैंबेंत सोलह सो तेताल । माघ मास सितपक्ष रसाल।
शकादशी वार रविनन्द । नखत रोहिणी चषको चन्द ॥
रोहिनि त्रितिय चरंन अनुसार। खरगसेन घर सुत अवतार ।
दीनों नाम विक्रमाजीत । गावहिं कामिनि मंगलगीत ॥
जब बालक छह सात महीनेका हुआ, तब खरगसेनजी सकुटुम्ब
श्रीपाश्वनाथकी यात्राको काशी गये। भगवत्की भावपूर्वक पूंजन करके उनके
चरणोंके समीप पुत्रको डाल दिया और प्रार्थनाकी,---
. चिरंजीवि कीजे-यह बॉल । तुम शरंणागतके रंखपांल ।
इस बालकपर कीजे दया | अब यह दास तुम्हारा भया-।॥
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