भाष्य सार जैन सिद्धान्तरतम | Bhashyasaar jain Siddhantratam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhashyasaar jain Siddhantratam by श्री राधागोविन्द जी - Sri Radhagovind Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री राधागोविन्द जी - Sri Radhagovind Ji

Add Infomation AboutSri Radhagovind Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भापप्सारजनसिद्वान्तरव्षम्‌ । श्र व्यत्रिकेण मृदादेरसच्चादयुक्रसिति चेतू। पिण्डादि पूर्व्य कार्य्य परदे मुदादिकारणं नोपसृद्यते घढादि कार्यान्तरेध्यनुवर्ततइत्येतदवुत्यम्‌ पिण्डघठादिव्यति- बकेण मुदादिकारणस्ानुपलक्षादिति चैन्न । मुदादि- कारणाना घठाद्ातृप्ती पिण्डादिनित्तावनुद्त्ति- दर्शनात्‌। सादुश्यादन्वयदर्शन॑ न कारणावृत्तेरिति अनुवतन या विपरीत देखनेमे आता है। इस प्रकारके सिद्दाग्त सुमारा भयुज्न होता है। जिस होतु उम्ति ख्यानमे झतपिण्ड यो घदादिका भपेच्चाका अनय्र म्तिकाका उपलब्धि वा अनुभव नहि होता है, इसिवास्स रझूतूपिग्डका अभाव सोति घटका उतृपत्ति होता है कद्दना चाहिये। सिद्धान्तबादि जन शिप्पोने कहते है| बीडका इंद्र वात कहनाभमि युक्षियिरद हय, झत्‌पिण्डका विनाश होने मि उस्का अवययमे रूत्तिकात रहता है, इसिवास्ती घढका उतृपत्तिकालमे रत्तिकाफा भनुवर्तन सब्य दाई रहता है , पूमिवास्त रतिकाहि घटका कारण है। मृत्पिण्डका अभाव कारण नदध्दि हय। चरमिकवादि वोद इस वातके प्रतिवादमे कहते है, सम्पूर्ण प्रदाथई चणकालस्थायी मृत्तिका थो च्णिक, तिस्का अनुसारसे घटका उत्‌पत्तिका पूछ मे यो मृत्तिका था घटका उत्पत्ति समयमे उसका सत्ता सहता नहिं है। इसिवास्ते उसका साद्गात्‌ दुसरा मृत्तिका घटमे भनुद्धत्त वा युज्ञ होता है, सादुशय तु छह मृत्तिकाखरप प्रतोति होता है, यधाथे एक खस्िका




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now