श्री बयालीस लीला और पद्यावला | Shri Byaleas Lila Or Padhamwali

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Shri Byaleas Lila Or Padhamwali by श्री राधागोविन्द जी - Sri Radhagovind Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ख) 5 >ु जल पत झतर रत कर लकारया प्रेम नेम सिद्धांत छु कीनो, वज विनोद न्यारो करि दीनो॥१८॥ -कंज महल पिय प्यारी सखी, अद्भुत केलि कही जो लखी॥१६॥ नव नव लीला हिय में मासी, वे रसिकन हित सर्वे प्रकासी॥२ ०॥ सत सिगार आदि रचि ग्रंथ, दरसायों जीवन हित पंथा॥२१॥ सखिनुकी तंत्र पुराननि मत्त सुलिखनुकी॥२ २॥ कोमल बानी सबकों भावे, अक्षर पढ़त अथ्थ दरसाव॥२१॥ दिसिदिसिधरवरपगटीबाँनी, रंसिकनिअपनीनिधिकरिजॉनी २४ वन विहार को जब प्रभु जाते, इनकी कुठी तहाँ. व्हराते॥२८॥ ग॑आरती भेंट छ करते, तब निज इष्ट भवन अनुसरते॥२६॥ शुद्ध पाक करि भोग लगाव, संतनि सहित प्रशादहि पावि॥३ ०॥ दोहा-बाँनी हित ध्रुव दास को सुनि जोरी सुसिकाँति । ( भगवत झुद्तिजी रृत श्री अनन्य माल से संग्रद्मत ) 1 चारि दिशनि समुद्र प्रजंत, बानी पढ़ सुने सब संत ॥२९॥ बानी सुनि सुनि भए-उपासिक, कम ज्ञानतजि भए बनवासिकर२ ६ / शुरू सुरुकुल सब भए प्रसन्न, प्रीतिरीति लखि कहे धनि धन्न॥२७॥ हरि बासर के भेद. न माने, सबेसु महा प्रसादहि जाने॥३ १ . जो शुरु जन कछु चरचा ठानें, बाद न कर कहे सो मानं॥४२॥ महा नम्नता सो मन मोंहें, सहन शील को ध्रुव सम कोहै॥३३॥ ' भगवत अद्भुत रीति कछु भाव भावनाँ पाँति॥ ३४ ॥




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