श्री गुरुजी समग्र खंड 1 | Shri Guriji Samagr Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक प्रयत्न जुड जाएगा, स्वातत्र्य मिला ती उत्तम ही है। इस बैठक की
भनक भी बाहर किसी को नहीं हुई और सघ शिक्षा वर्ग में युवकों को
आस्वान किया जा रहा था कि वे पढाई से छुट्टी ले सघ कार्य विस्तार के
लिए निकलें। उस वर्ष ६० नए प्रचारक कार्य हेतु निकले थे।*
श्री गुरुजी के समग्र विचारों के इस विशाल सकलन का अनुशीलन
करते समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि सभी महापुरुषों के विचारों
के समान इन विचारों के भी दो भाग हैं। एक, जो शाश्वत व कालजयी है
और दूसरा जो देश-काल-परिस्थिति से मर्यादित है। दूसरे प्रकार के विचार
उस देश-काल-परिस्थिति में सार्थक होते हुए भी सदर्भ बदलने पर ज्यों के
त्यों सार्थक होंगे ही ऐसा नहीं कहा जा सकता। उनसे दिशा-सकेत भले
मिले, कितु ज्यों का त्यों उन्हें लागू करने का आग्रह मात्र (वाद! या 'इज्मः
को जन्म देगा। 'इज्म! या वाद” की परिभाषा ही यह है कि वह विचारों
का एक बद दायरा है। हर जगह उसका आग्रह करने पर व्याख्या को लेकर
मतभेद व मनभेद और फलस्वरूप आदोलनों के चैंटने के उदाहरण कम
नहीं हैं। कम्यूुनिज्म, सोशलिज्म, केंपिटेलिज्म, गॉधी इज्म आदि सब इसी
लकीर का फकीर बनने की प्रवृत्ति के कारण बेंटे हैं। डाक्टर हेडगेवार जी
ने इसीलिए केवल मोटे-मोटे सिद्धात बताए और कहा जब जैसी परिस्थिति
निर्माण हो तो पाँच-सात लोग बैठी, साधक-बाधक विचार करो और
सामान्य सहमति के रूप में जो निष्कर्ष निकले, उसके आधार पर कार्य
करो। यही कारण है कि सघ आज पाँचवीं पीढी में प्रवेश कर रहा है कितु
सघ का आदोलन टुकडों में नहीं बेंटा।
पूजनीय गुरुजी के विचारों का अध्ययन करते समय इस पहलू को
ध्यान में रखना आवश्यक है। अध्यात्म के स्थायी अधिष्ठान पर ही उन्होंने
विभिन्न सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विषयों पर अपने विचार प्रकट
किए, कितु यह सब करते हुए भी समाज सगठन के स्थायी कार्य पर से
उन्होंने दृष्टि नहीं हटने दी। वे स्वय कहते हैं-- “सब में एक ही तत्त्व
विद्यमान है इसलिए सबके सतोष में स्वय सतोष अनुभव करना भारतीय
परपरा में समाज जीवन का आधार है”।' “हम चाहते हैं कि इस सत्य
१ “न्रिदल'- ले श्री म ह गोडबोले, साधना मुद्रणालय, सागली, पृष्ठ ६०-६१
२ समग्र दर्शन खड ७, पृष्ठ ६०-६१
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