कविता श्रद्धांजलि | Kavita Sradhanjali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
40
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
उमड़े घुमड़ि घेरे घहर घमशणड भरे,
घूमि घूमि चहु' था ते कमि मम आयो हैं ॥
मोरन के सोर भरे गरज गुमान भेरे,
भिल्ली कनकार भेष भोरु सो बनायों है ॥
विशद वियोगिनी के बध के कृपाण राम,
चपला चमकायो है चिनयो लयायो है।
बिरह बढ़ायो वेग विषम सतायो काम,
कहर भवायो घोर घोर घन छायो है।
रचयिता-श्री कन्हैंया लाछ जेन, छपरा |
बीति गो निदाघ दाघ आझायो ऋतु पावस को
मोप्न के ओर भेरे शोर मन भायो हैं।
छोर छोर छुन॒रा को छूटि छूटि जात छूटा,
ध्यानंद शमन्द् छुकि छूकि छिति छायो है॥
शीतल समीर गति घधीर हो चलन ७ गी,
सरस संयोेगी सज साज सुख पयोदे।
बिरही बिचारन के बिरह बढ़ाने व्यग्यो
देखो देखो ध्याज नम घोर घन छायो. हे.)
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