कविता श्रद्धांजलि | Kavita Sradhanjali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kavita Sradhanjali by डॉ. भगवती प्रसाद सिंह - Dr. Bhagavati Prasad Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. भगवती प्रसाद सिंह - Dr. Bhagavati Prasad Singh

Add Infomation About. Dr. Bhagavati Prasad Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(२) उमड़े घुमड़ि घेरे घहर घमशणड भरे, घूमि घूमि चहु' था ते कमि मम आयो हैं ॥ मोरन के सोर भरे गरज गुमान भेरे, भिल्ली कनकार भेष भोरु सो बनायों है ॥ विशद वियोगिनी के बध के कृपाण राम, चपला चमकायो है चिनयो लयायो है। बिरह बढ़ायो वेग विषम सतायो काम, कहर भवायो घोर घोर घन छायो है। रचयिता-श्री कन्हैंया लाछ जेन, छपरा | बीति गो निदाघ दाघ आझायो ऋतु पावस को मोप्न के ओर भेरे शोर मन भायो हैं। छोर छोर छुन॒रा को छूटि छूटि जात छूटा, ध्यानंद शमन्द्‌ छुकि छूकि छिति छायो है॥ शीतल समीर गति घधीर हो चलन ७ गी, सरस संयोेगी सज साज सुख पयोदे। बिरही बिचारन के बिरह बढ़ाने व्यग्यो देखो देखो ध्याज नम घोर घन छायो. हे.)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now