परिषद निबन्धावली भाग - 2 | parishad Nibandhavali Bhag - 2

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parishad Nibandhavali Bhag - 2  by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीरादाई जीवनों और कविता ] २९ 5 4५, प्रियादास ने लिखा है कि श्वसुर-णढ़ में देवी-्यूनन पर सास से अनबन हो गई और इन्हे एकास्तवास दिया श्यमुरणह गया । मीरा के एकनदों पद भोँ इस आशय फेहैं-- “नहि हम पूजा गोरम्या जी, नहि पूजा अनदेव। परम सनेही गोगिन्दों, थे काई लानों म्हारों भेत्र 1 * प्रेमी दो दन्तकथा सुनसीदासजी के बारे में भी प्रचलित है। बह युग साम्प्रदायिक मो का था।जिस युग में भ्रीआचार्य ली की सेविका न होने के कारण अधिषारीजो ने मीराफी भेट हाथ हफ से मे एुई, उसमें ऐसा हो जाना शाई हअआरघग फी बात नहीं | दूसरे बचपन हू से दे गिरिधर को अपना इष्ट भान चुदी थीं, फिर मला अन्य देवता यो सिर दैसे मुफातीं सवगस्तत्य फे लिए बढ़ी फा पहना मान भरित्पानों के विद पाए नहीं 1 इतना दोते हुए भी ऐसी कथाएं. केवल दु्तमूटक गगयो हैं। शोधपुर और दित्तौड़ के राजव शो मे शरापर थेदा- दिक सरदस्प दोठा पता आया दँ।दोंनों पर दुसरे के रौति ध्यय्टारों से परिचित थे । दचपि बिभौड़ के राजा विशेषता दि शक्त थे, पर हाही पे पशा $ राहा कुज्म में शिएरीषगे ही स्घाएना के थी । दृ्वोन्पू्रन की इग का के गद तेते से भक्त » ॥शइह जुक[ धुरु १५३ ३२७ 9 हू १ हैशप्ट्रतशु 1 ॥ 7 शाई का अीशज-कॉ लव | बालद जाहन पाता ?




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