बन्दी - जीवन भाग - 1 | Bandi Jeeva Bhag - 1

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Bandi Jeeva Bhag - 1  by श्रीशचीन्द्रनाथ सान्याल - Shri Shacheendra Nath Sanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन्दों जीवन श्ष्ट्‌ कई स्थानों मे घूम कर अन्त में रासबिहारी मे काशी में रहना स्थिर किया। वे काशी में मेरे साथ प्राय एक वर्ष तक रहे उस समय उन के सस से मैंने जो आनन्द पाया था उसे सें मूल' नहीं सकता । इतने अरसे मे मेंने उन को शायद कमी भी दुखी नहीं देखा ॥हा, जिस दिन दिल्ली पड़यन्त्र के झुकदसे के फेसलि के” अनुसार चार व्यक्तियों को फासी का हुक्‍्म हुआ उस दिन एफान्त में उन को अश्रुपात करते देखा था।. ५ रासूदा जितने दिन काशी में रहे उतने दिनभारतवर्प के भिन्न भिन्न स्थानों 'के छोगो को उन से मिलते देखा था। राजपूताना पंजान और दिल्ली से छेषार सुदूर पूर्व वगाल तक के छोग उन के पास आते थे। वे जब तक काशी में रहे तय तक युक्तश्रदेश तथा पजाप केभिन्न भिन्न स्थानों में विप्ल्व केन्द्रों की स्थापना में छगे रहूँ। उसी का यह परिणाम हुआ कि एफ हीं वर्ष में हमारा दछ पर्याप्त शक्तिशाली हो गया और उसी का यह फछ था कि योरोौपीय' मद्दाथुद्ध जत्र श्रारम्भ हुआ तव हम खूब प्लोर से काम कर सके थे । सम १९१५ भारत में चिरस्मरणीय रहेगा । इस सारू विपुव॒ की जितनी बडी तैयारी अकारथ गई उतनी बडी तैयादी सब ६१ के गदर के पबात्‌. पंजान में कृरा-विद्रोदद के. सिंता और हुई क्रि नहीं इसमे सन्देद है।इस पड़्यन्त्र फार्री दछ के गिरफ्तार हो जाने पर “भारतरक्षा” फानून गढ़ा गया” था' । उस' समय के' होम मेंम्बर' क्रेडक साहय ने, भार- सींय ज्यवस्थापिका सभा में उक्त कानून का अस्ताव उपस्यित्त करते समय'जों बरूता टी थीं उस में फद्दा था --7४० #४6 +




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