लाल बत्ती जल रही है | Lal Batti Jal Rahi Hai

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Lal Batti Jal Rahi Hai by महावीर अग्रवाल - Mahavir Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ये साहित्यिक लठत | २४५ ऋविता का शोक चर्राया हैं। घर वाले विल्लाते रहते है--कवि फे रूप में घुछ् कू्लक पैदा हो गया। परन्तु साहबजादे साहित्य की सेवा में मस्त “रहते हैँ। वाहवाही करने चार साहित्यिक हमेशा साथ सगे रहते हैं । लगन बरावर बढती जा रही है। ये अपने नये संग्रद् के लिए एक साहित्यिक लठेत की खोज में हैं। * क्‍या कहा ? साद्वित्यिक लख्स 1 हाँ, जी हां | साहित्यिक लठेत को खोज में है । सुनिए साहब । साहित्यिक घट्ेत उन्हें कहते हैं जितको साहित्यिक जगत में तूती वोलतो है 1 साफ-साफ बताइए । पदेलियाँ मत बुझाइये । तो सुनिए !....!! जिस प्रकार पहले जमीदारों और मालगुजारों का उत्थान-पतत उनके लठेतों पर रहता था, उसी प्रकार समकालीन साहित्यिक जगत में किसी भी साहित्यकार का उत्यान ओर पवन समीक्षकों को दोली पर निर्भर करता है। इन्हें हो चालू भापा में साहित्यिक लठैव कहते हैँ । बात कुध कुछ जमती है साई । पूरी बात तो सुतिए। जैसे जमीदारों के लठेतों की लाठियाँ भाक्रमण के साथ-साथ समय पढने धर सुरक्षा भी मस्तियार करती थी, उसी प्रकार साहित्यिक लठत विरोधियों पर जमकर आक्रमण करते हैं।और जब विरोधो सेमे मे साहित्यिक लत किप्ती कृति की धज्जियाँ उड़ाते है, तो ये सुरक्षा कवच बनकर सामने आते हैं । कहा जाता है कि यदि दिखाज समीक्षक आपके पहले संग्रह पर अनुकूल टिप्पणी दो दें, तो देखते हो देखते आप खाहित्याकाश पर चमकने वाले सिठारे होंगे । आपको तुलना दोड़ती पत्थर, ब्रद्याराक्षम, काम्रायनी; आँसू, कुरुक्षेत्र से होने लगेगी । लोग समभने चर्गेगे कि एक दिव्य प्रतिसा का अवतरण सोहित्यिक जगत में हो छक्रा है। बोर यदि ये साहित्यिक लठत जाराज हो गये तो आपके पचीसों संग्रह आते के वाद भी आप वौने ही रहेंगे और लगातार छाकाश छूने के लिए फड़फड़ाते रहेंग्रे । एक दिल्न मैंने २




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