शरणागति मीमांसा | Sharnaagati Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मत -- रचना हैं में रगा रचयिता का नहीँ देखा । चनिन्दित उसका जन्म नहीं नरतन मेंह छेसा ॥ नर॒ झरीर हे सफल प्िर्फ हरि पिलने ही से। नाहें तो कोन प्रयोजन निकला नर देह से ॥ भजनहु क्रर्तिीन ते तदापे, सफालित मनुज श्वरीर। तदापि न सफ़ालित तस जिमि आ ग्रयट मिले रघुवर ॥ जितना कऊराति तयम नियम, प्रिय मिलन हित परलोक में | उतना न क्‍यों होकर पिरहणी, झुराति ग्रतिम झोक में ॥ तोहि भले सयम् मरे पर पराति लोक में पहुँचाय दे । पर बिरह सासे बिनु को नहिं जो जजियत पति।गिलाय दे || ऐसा क्यों १ इसलिये कि आप सहृदय है, अरुणाद्र हैं। आपने अपनी देवोपम वांणी को उदयीण कर छोगों को सद्पथ पर प्रेषित कर उन्हें नवजोवन प्रदान किया ऐै। आपके आदझ उपदेशों में मक्ति भाव की तह़ीनता, अनन्‍्यता तथा निरावछम्बता का प्रमुख स्थान है । श्रद्येयवर, हम भूले हुए पथिकों के आप पथ प्रदशेक हैं । हम लोगों के माया मोह की घोर नि स्तव्ध निशा के छिये आप प्रचण्ड मातंड हैं। अतएव हम दासानुदास आपके अनुपम उपकारों से बहुत क्नज्ञ हैं और श्री लाछजी पे सामुनय अनुरोध करते हैं कि आप जसे मद्गापुरुप अपनी ऐसी ही दया मया सतत बनाये हुए भयवद्धक्ति के आदश उपदेशों द्वारा हम दासों को अनुगृहीत करते रह जिसके लिये हग दास भाप सह श्रद्धाह्ल मद्ानुभाव को कोटिश धन्यवाद दे कर अपने मस्तक पर श्रीचरणों की पावन रज को धारण कर अपने को कृत्य-कृत्य सम । में महामागवत श्री पूरनमछजी गद्दानी कटनी निवासी को हृदय से धन्यवाद्‌ दिये बिना नहीं रह सकता। भआाज के कार्यक्रम का श्रेय वस्तुत पूण रुपेण आपको ही है जिनको सतत प्रेरणा एवं हृदयाकांक्षा से ही यद् सब कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है । इसके पदचात में स्वागत-समिति के सदस्यों तथा अन्य रुस्थाओं का अत्यन्त उपकार मानता हैँ जिन्होंने अपना अमूल्य समय व्यय कर दास की उत्कट इच्छा को फार्यरूप में परिणित किया। इसके अतिरिक्त में आप सब महानुभावो को स्वागत समिति की भोर से हृदय पते धन्यवाद देता है जिन्होंने थाज के काय-क्रम में सहयोग देकर कार्य क्रम को सफल बनाया तथा अपने अमूत्य समय को सार्थक किया। भाष छोगॉने अद्धास्पद स्वामीजी के प्रति अपनी अपूर्त श्रद्धा का परिचय दिया है उसके छिये में आपका हृदय से आभारी है, और आशा फरता हूँ कि आपलोग श्री स्वामीजी महाराज के शुक्रवार ता० १३ से प्राग्म्म होने वाले प्रचचन मे छाम उठावेंगे सेवक स्वागता यश्त राधावल्लटम ऊावचरा पे० खागत समिति रामाविलास गद्ञनी वेद पिपरिया तारास ?2-६-४५०




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