गूंगी मछलियाँ | Goongi Machhaliyan

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Goongi Machhaliyan  by विनोद रस्तोगी -- Vinod Rastogi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्स्त्रो अनूप रधिया झनूप रधिया : अनूप रधिया झनूप रधिया 'रधिया भ्रनूष रघिया : अनूप धनूप रधिया पझनूप शधिया : (खुककर अभिनय को मुद्रा में) यत्त माई लेडी ! £ (हँसकर) तुम बिल्कुल नही बदले 1 ४ गमिरगिट की तरह रंग बदलने वाले और होते हैं, रधिया ! अनूप तो कारी काँवरि है जिस पर दूसरा रग चढ़ हो नहीं सकता। (रघिया हेसती है ।) कहाँ है मनोज का बच्चा ? कचहूरी गए हैं। श्राते हो होगे । : दोस्त के लिए एक दिन कचहरी नहीं छोड़ सकता ! मेरा तार नहीं मिला था क्‍या ?ै ४ कोई जरूरी मुकदमा था । तुम बेठो आराम से। मैं श्रभी चाय बनाती हूँ । : चाय मैं पीकर भाया हूँ । : कहाँ से । : स्टेशन से । वहीं सामान छोड़ झाया हूँ । (सोफ़ पर बेठकर सिगरेट सुलगाता है।) : क्यों ? सामान स्टेशन पर क्‍यों छोड़ भाए ? : क्रूरी काम से बनारस जा रहा हैं । मनोज से मिलने के लिए ही रुक गया । लेकिन तुम तो तीन बजे श्राने वाले थे । ४ गाड़ी लेट भ्राई तो मेरा कया कसूर ? रधिया : लेकिन भैया, ऐसी मेहमानदारी भी क्या ? बरसों के धाद आए हो । बाबूजी के ब्याह में भी नहीं भ्ाएं। और भ्रव*** ४ वापसी में रुकूंगा दस-पाँच दिन । तव जी भरकर खातिरदारी कर लेता । हाँ, यह्‌ तो बताओ, तुम्हारी बहू रानी कौसी हैं ? : बहुत भच्छी । रूप भौर गुन दोनों की खाद । ४ तब तो मनोज खूब चाहता होगा उन्हें ॥ (रधिया सौन रहती है) बोलती वयों नहीं ? ४ भव क्या बताऊँ, भैया ! उनके घ्िर पर तो मीना का भूत अब




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