अन्दर का बौनापन | Andar Ka Baunapan

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Andar Ka Baunapan by ईश्वर चन्दर - Ishvar Chandar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अचानक चुप हो गया । उसने देखा कि बहुआा रही थी। आते ही उसने देवर से पूछा-- “वालों के लिए साथुन रछू या मुल्तानी मिट्टी लगाओोगे २?” बाप की बात के बीच यह हस्तक्षेप उसे अच्छा नही लगा। इसलिए अन्यममस्क-सा वहु बोला--- जो हो, रख दो... । /! भाभी चली गयी । उसने फिर प्रश्नभरी निगाद्दों से बाप की तरफ देखा। बाप ने फिर बोलना शुरू किया--/और ऐसी हालत में हमारे पास इसके सिवा और कोई चारा नही था कि तुम्हारी भाभी के बुछ जेवर सेकर आनेवाली यहू के लिए कुछ सोना बनवा लेते ,.और बुछ नही, केवल एक हार और दो क्गन हो लिये थे । उस पर यह सब आग-सी लग गयी है घर मे...! फालतू ही दिनभर रोती रहती है ..मुझी तो, बेटे ” यह सब बडा अजीव-अजीव-्सा लगता है 1” चैटा बोला--' देखिए ना, पिताजी ! यहा मैं आपसे सहमत नही हू ! जिस बात को लेकर घर मे महाभारत खडा हो जाए, हमे बहू काम ही नही करना चाहिए. ..इस सबके बिना भी ती वाम चल सकता था... बहुत धीमी आवाज में बाप बोला-- हा, चलने को चल सकता था, लेकिन तुम्हारी ससुरालवालो की इच्छा थी वि हम अपनी आनेवाली बहू के लिए जेबर कुछ अधिक बनवायें ! ऐसे ही बस, दोनों तरफ बात कुछ सुदर-सी लगती है... और मैं तो, बेठे |! तुम जानते ही ही, कि इस राय का हू कि सबधियों की बात को ठालना अच्छा नहीं है . कम-से-कम अपने खानदान में इस मामले मे कभी अपनी नाक नही कटने दी है.” बाप फिर चुप हो गया। बहू ने अदर आकर देवर से कहा--' पानी मैंने बाथरूम में रख दिया है । साबुन और मुल्तानी मिट्टी भी रख दी है (” उठकर उसने अपनी अदेची मे से कपडे और तौलिया निकाला और नहाने को बाथरूम चला गया। उसके चले जाने के वाद, वाप ने बहू से बहा---“देखना बहू | जब तद वह नहा आए, तब तक तुम उसके खाने के लिए कुछ बता दो ., .और हा, किसी बच्चे को भेजबर थोडी वर्फ भी मगवा लेना...” वाप फिर वागज़-पेंसिल एक रात के लिए ४ २७ ड




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