कसाय पाहुड़ सुत्त | Kasay Pahud Sutt

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Kasay Pahud Sutt by पं. हीरालाल जैन सिद्धान्त शास्त्री - Pt. Hiralal Jain Siddhant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भस्तावना ब्‌ कसायपाहुडके १५ अधिकारोंमेंसे प्रारम्भके ६ अधिकारोंमें कर्मोके प्रकृति, स्थिति, अनु- भाग और प्रदेश-सम्बन्धी बन्ध, उदय, उदीरणा, सत्त्व और संक्रमणका जो वर्णन किया गया है, उस सबका आधार महाकम्मपयडिपाहुड है ओर यतः गुणधराचार्यके समयमें मद्दाकम्सपयडि- पाहुडका पठन-पाठन बहुत अच्छी तरह प्रचलित था, अतः उन्होने प्रारभ्भके ५ अधिकारों पर कुछ भी न कहकर उक्त अधिकारोके विषयसे सम्बन्ध रखनेवाले विषयोके प्रच्छारूप तीन ही गाथासूत्रोंकी कहा | यह एक ऐसा सबल प्रमाण है, कि जिससे कसायपाहुडका षद्खंडागमसे पूर्ववर्तित्व स्वतः सिद्ध होता है । आगे चूर्णिसूत्रोंके ऊपर विचार करते समय इस विषय पर विशद प्रकाश डाला जायगा। गुणधर और परसेन दि० परम्परामे जा आचार्थे श्रुत-प्रतिष्ठापकके रूपमे ख्याति-प्राप्त है उनमे आचार्य गुणंधर ओर आए० घरसेन प्रधान है। आ० घरसेनको द्वितीय पूर्व-गत पेज्जदीसपाहुडका ज्ञान प्राप्त था, और आ० गुणघरकी पंचम पूर्ब-गत पेज्जदोसपाहुडका ज्ञान प्राप्त था। इस दृष्टिसे निम्न अथे फलित होते हैं-- १--आ० धरसेनकी अपेक्षा आ० गुणधर विशिष्ट ज्ञानी थे । उन्हें. पेज्जदोसपाहुडके अतिरिक्त महाकम्मपयडिपाहुडका भी ज्ञान प्राप्त था, जिसका साक्षी प्रस्तुत कसांयपाहुड ही है, जिसमें कि महाकम्मपयडिपाहुडसे सम्बन्ध रखने वाले विभक्ति, बन्ध, संक्रमण ओर उदय, डदीरणा जैसे प्रथक्‌ अधिकार दिये गये हैं। ये अधिकार महाकस्मपयडिपाहुडके २४ अनुयोग- हव1रोंमेंसे क्रमशः छठे, बारहवें और दशवें अनुयोगद्वारोंसे सम्बद्ध हैं। महाकम्मपयडिपाहुडका चौबीसवाँ अल्पबहुत्वनामक अनुयोगद्वार भी कसायपाहुडके सभी अर्थाधिकारोंमें व्याप्त है। इससे सिद्ध होता है कि आ० गुणधर महाकम्मपयडिपाहुडके ज्ञाता होनेके साथ पेज्जदोसपाहुड- के ज्ञाता ओर कसायपाहुडके रूपमें उसके उपसंहारकर्ता भी थे । इसके विपरीत ऐसा कोई भी सूत्र उपलब्ध नहीं है, जिससे कि यह सिद्ध हो सके कि आ० घरसेन पेज्जदोसपाहुडके भी ज्ञाता थे । २--आ ८ धरसेनने स्वयं किसी ग्रन्थका उपसहार या निर्माण नहीं किया है, जबकि आए० गुणधरने प्रस्तुत प्रन्थमें पेज्जदोसपाहुडका उपसंहार किया है। अतएवं आ० धरसेन जब वाचकप्रवर सिद्ध होते है, तब आए० गुणधर सूत्रकारके रूपमे सामने आते है। ३--आ ० गुणधरकी प्रस्तुत रचनाका जब हम षट्खंडागस, कम्मपयडी, सतक ओर सित्तरी आदि कर्म-विषयक प्राचीन ग्रन्थोंसे तुलना करते है, तब आ० गुणधरकी रचना अति- संक्षिप्त, असंदिग्ध, बीजपद-युक्त, गहन ओर सारवान्‌ पदोंसे निर्मित पाते हैं, जिससे कि उनके सूत्रकार होतेमे कोई संदेह नहीं रहता । यही कारण है कि जयघवल्ाकारने उनकी प्रत्येक गाथा को सूत्रगाथा और उसे अनन्त अर्थसे गर्भित बतलाया है । कर्मोके संक्रमण, उत्कर्षण, अप- कषेणादि-विषयक अतिगहन तत्त्वका इतना रुगस प्रतिपादन अन्य किसी अन्थमें देखनेको नहीं मिलता | इस प्रकार आ० गुणधर आए० घरसेनकी अपेक्षा पूर्ववर्ती ओर ज्ञानी सिद्ध होते है । पृष्पदन्‍्त ओर भूतबलि आ० धरसेन-उपदिष्ट महाकेम्मपयडिपाहुडका आश्रय लेकर उसपर षट्खंडागम सूंत्रोंके रचयिता भगवन्त पुष्पदन्‍्त ओर भूतबलि हुए हैं। यद्यपि कसायपाहुडकी रचनाके अत्यन्त संक्षिप्त ओर गाथासूत्ररूप होनेसे गद्यसृत्रोंमें रचित और विस्तृत परिमाणवाले षटख््ंंडागमके , तीथ उसकी तुलना करना संभव नहीं है, तथापि सूक्ष्मदष्टिसे दोनों प्रन्थोंके अवलोकन करने पर




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