प्राकृत - पाठमाला | Prakrit - Pathamala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकृतपाठमाला ७ 1]
हे” १-२५ (१७) छ ज् ण् तथा न् ये वर्ण यदि किसी व्यंजन
से पहले हों तो अनुस्वार हो जाता है,
जैसे कि--
पड कितिः पंती ए्ण्मुखः छमुहो
पराइसुखः परंमुहो उत्कण्ठा उक्कंठा
कज्चुकः कंचुआो सन्ध्या संभा
लाञ्छनम् लंछर्ण विन्ध्यः विभो
हे० १-३० (१८) अनुस्वार के पर में आ्ाने वाले वर्मीय वर्ण
हो तो श्रनुस्वार के स्थान में उस वर्ग
का भ्रन्त्य भ्रक्षर विकल्प से हो जाता है,
जसे कि--
सन्ध्या सञऊभा संभा उत्कण्ठा. उक्कण्ठा उक्कंठा
पड़; पड़ी पंकोी चन्द्र त्तन्दो चंदो
केज्चुक: कजचुओ कंचुओ फलसम्ब: कलम्बोी कफलंबों
हे० १-११ (१६) संस्कृत शब्द के श्रन्त्य व्यजन का प्राकृत में
प्रययः लोप हो' जात्ता है, जेसे कि---
यावत् जाच यद्यस् जस
तावत् ताव जन्मन् जम्म
३ न 4०4प न कप 1० 1 2 727
१. पद विभक्ति की शअ्रपेक्षा से अन्त्य परन्तु वाक्य की विभक्ति की अपेक्षा
से भ्रनन्त्य होने से समास में विकल्प से लोप होता है, जैसे कि--
सद्धिकु: सभिक््खू. सब्मिक्खू एतदगुणा:. एश्रगुणा
सज्जन: सज्ज़णो संजणो तद्गुणा- घरगुणा
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