प्राकृत - पाठमाला | Prakrit - Pathamala

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Prakrit - Pathamala by नागचन्द्र जी स्वामी - Nagachandra JI Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकृतपाठमाला ७ 1] हे” १-२५ (१७) छ ज्‌ ण्‌ तथा न्‌ ये वर्ण यदि किसी व्यंजन से पहले हों तो अनुस्वार हो जाता है, जैसे कि-- पड कितिः पंती ए्ण्मुखः छमुहो पराइसुखः परंमुहो उत्कण्ठा उक्कंठा कज्चुकः कंचुआो सन्ध्या संभा लाञ्छनम्‌ लंछर्ण विन्ध्यः विभो हे० १-३० (१८) अनुस्वार के पर में आ्ाने वाले वर्मीय वर्ण हो तो श्रनुस्वार के स्थान में उस वर्ग का भ्रन्त्य भ्रक्षर विकल्प से हो जाता है, जसे कि-- सन्ध्या सञऊभा संभा उत्कण्ठा. उक्‍कण्ठा उक्कंठा पड़; पड़ी पंकोी चन्द्र त्तन्दो चंदो केज्चुक: कजचुओ कंचुओ फलसम्ब: कलम्बोी कफलंबों हे० १-११ (१६) संस्कृत शब्द के श्रन्त्य व्यजन का प्राकृत में प्रययः लोप हो' जात्ता है, जेसे कि--- यावत्‌ जाच यद्यस्‌ जस तावत्‌ ताव जन्मन्‌ जम्म ३ न 4०4प न कप 1० 1 2 727 १. पद विभक्ति की शअ्रपेक्षा से अन्त्य परन्तु वाक्य की विभक्ति की अपेक्षा से भ्रनन्त्य होने से समास में विकल्प से लोप होता है, जैसे कि-- सद्धिकु: सभिक्‍्खू. सब्मिक्खू एतदगुणा:. एश्रगुणा सज्जन: सज्ज़णो संजणो तद्गुणा- घरगुणा




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