सोहन - काव्य कथा - मन्जरी भाग - 2 | Sohan - Kavya Katha - Manjari Bhag - 2

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Sohan - Kavya Katha - Manjari Bhag - 2  by सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७1 जवार के मोती ब्रा (तर्ज--लावणी खड़ी ) सजग रहो मत खोबो जिन्दगी, यह अ्रवसर नहीं आने का । यह मौका है जुवार डालकर, वापिस मोती पाने का ॥ठेर॥ एक विप्र' ज्योतिष का ज्ञानी, सदा गणित में रहे लवलीन । कुछ भी सार रखे नहीं घर की, है पूरा पैसे से दीन ॥ एक दिवस विप्राणी झा कहे, नाथ ! अपन हैं घर में तीन । किन्तु पास में साधन नहीं है, इससे पा रही दुःख मैं पीन ।। छोटी-- भू देव कहे तू क्‍यों नाहक घबराये, मेरे पास कमी नहीं मांग तेरे दिल चावे । तब नारी बोली धर में अन्न नहीं, पावे दिन भर में यों ही मिथ्या बात बनावे ।। बड़ी हो गई छोरी देखो, घर में पैसे नहीं झ्राने का ॥1१॥ विप्र कहे मैं कहूँ सोकर, तू समय आगया है अ्रति पास । प्रमाद त्यागकर सावधान रह, पूरण होगी तेरी आश।॥। अभी वक्त आने वाला है, जुवार से मोती हो खास । शभ मुह॒ते में काम किया, तो दरिंद्र होगा सारा नाश॥॥ छोटी-- जलते चूल्हे पर जल हंडिया रख देवे फिर मैं करूं हुंकार ध्यान रख लेवे । श्रवण करी हुंकार आलस नहीं सेवे, वह जुवार डालकर निश्चय मोती लेवे ।। नारी सोचे घर में पता नहीं है, जुवार के दाने का 11२॥। जाकर पड़ौसी के घर से लाऊं, जुवार तुलाकर मैं इस वार । पाड़ोसन से आ ज्वार मांगी, कह दीना है सब ही सार ॥। १छ




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