पूरे - अधूरे | Pure Adhure
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ः आल रा
हूँसी झकी, सो एकाएक बोले, “सुरेश महाराज कस आए थे, मेरे बस-ऑफिस में
पधारे थे दो पल के लिए । बोले, म जाने किसे उतारने आए हैं। देखा तो, एक मढ़ी
कहावर सट़की को सेकर बस पर घढ़ें, मालमत्ता ममेत । **पर सुना कुछ ? यह
लड़बी कौन है ?
४आंख की डॉवटर है।””
“तो औरतें भी आंस की डॉबटर होती हैं ? ”
“क्यों नहीं होगी ?”
सो सो मही बात है। मर्दों की आंघों को औरतें ही अच्छी तरह सममती हैं
“औरतों फी' आंधों का भी औरतें अच्छी तरह अन्दाजा लगाती हैं। घर में छ्
देखता हूं***। हां, तो जो आई वह बया है, सधवा या रुंआरी ?” ५
“पता नहीं ।'
“सुरेश-महाराज की कोई सगती है कया ?
॥/जान-पहुचान की है।
“अपनी कोई नहीं है ?”
“बुछ सप्म में नही आया !
थोडी देर चुप्पी छाई रही। दोनों ही शायद मन-ही-मन उस सड़की को देख
रहे थे । अवनी ने एकाएक जाने की जल्दी अप भव की । बोला, तो घलता हूँ'*'।
बिजली याबू भी जाने के लिए व्यस्त हो गए। “देसी हरकत, मैंने आपको
लेट फरवा दिया । अच्छा तो, मिघिर सा'व, चलता हूं । मुझे एक बार गोपीमोहन
के पास जाना है। *'शाम को भेंद-मुलाफझात होगी।
बिजली बाबू की साइकिल सामने से हट गई, तो अयनी ने आफिस की ओर
कदम बदाए।
चोड़ो दूर आगे जाते हो अवनी का ऑफिस है। देशने पर ऑफिस-सा नही
सगता है, कोई बन्द हो जानेवाला छोटा-मोटा कारसखाना जैसा दीखता है बहुत
बुछ देसी ही एरल है। फछ कटोली माड़ियों के बाड़े है, उनसे लगी बहुत बड़ी
जगह को जालीदार तारो से घेर दिया गया है, बीघ-बीच में यहा-वहां एक-एक
छोडे-मोटे ई ट के रंग के गहरे लास घर है, उन पर टाइल्स के छाजन हैं। दुल्ी
जपह में तरह-तरह की घोजें बिखरी हुई हँ--शोहे के खमे, शाल थे से,
तरह के तार, केवल या एक पहिया, टूट बबरो, घीमी मिट्टी मेः इनगूलेटर, दो-एक
टूटे-फूटे दृक, मय एक क्रम के भी । अ पर वितनी विचित्र यस््तुए है । उन्हीं के बीच
बही बनेर ये पेह, और मेयड़े के फूसों के मुरमुट हैं। एक बटुत बडा हर का पेड़
है एक ओर---उसी से सटा हुआ बुआं है। यह मकान किराए पर लिया हुआ है--
यह समझते में कडिनाई नहीं होती है
अवनी शिसी ओर देसे बिना सोधे ऑफिस में चला यया ! अभी यहां शु्ी-
मजदूरों के या भीड़ के रहने वा कोई शारण नहीं है। ऑफिस के कुछेह मौरूर-
चाकर बिरानी है। मोटे तौर पर यहे जगह शान्त है। वर्षा के पाती से जैसे वी घड़
हो गया है। वैसे ही घास भी काफी उप गई है। सभी शु्ध भीगा-भीगा-मा दौसा
रहा था।
हे अपने बपरे में जावर अवनी मुर्सी पर बेठा। बेयरे ने मेज-शुर्मी पोछकर
साफ कर ररा है, रिडकियां भी छुसी हुई हैं। सामते की ही दीवार पर तरह-तरह
न अल
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