छाया मत छूना मन | Chaya Mat Chhuna Man

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Chaya Mat Chhuna Man by हिमांशु जोशी - Himanshu Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- एक दिन माँ रसोईघर में दाय दना रही थी। पड़ोस के ठेकेदार रणधीर चाचा अन्दर चारपाई पर बैठे थे । उन्होने सामने खड़ी वस्सो-- बसुधा को जबरदस्ती खीचकर अपनी गोद में विठछ्ा लिया और फिर उसे भीचकर चूमने लगे तो माँ बिगड़ पड़ी 1चाय की केतली हाथ से छूटकर नीचे गिर गयी ।'तैनूँ शर्म नई आंदी....।'रणधीर चाचा पहले सकपकाये-खिसियाये, फिर कुछ एककर व्यंग्य- बाण छोड़ते हुए बोले “शरम तो तुम्हें आनी चाहिए थी परवीन ! अपना चरित्तर देखो ! फिर देना दूसरों को दोप....”*इतना कहकर यह चले गये 1माँ सुन्न रह गयी !उसी समय उसने खिड़कियाँ बन्द कर दो । दरवाज़े बन्द कर दिये....।बहू दिन था कि यह दिन !अब घर में कोई भी आता न था। जिसे काम होता बहू जिड़की से ही बातें करके चला जाता 1इसके कुछ ही दिनों बाद माँ ने हमेशा के लिए लुधियाना छोड़ दिया। दोनों बच्चियों को छेकर दिल्ली आ गयी और यहाँ दूसरा विवाह रचालिया 1छापर यह दूसरा विवाह भी रास न आ पाया ।दूसरे पिता इतने भोछे थे कि दौन-दुनिया को इन्हें कुछ भी खबर मृथी।माँ को एक सहारा चाहिए था, संसार को निगाहों से बचने के लिए । लेकिन भह सहारा भी मृगतृष्णा-सा छग रहा था।यहाँ आकर पिछली सारी जिन्दगी को उसने भुला दिया था। घर तक़ हो सीमित संसार था अब उसका और पति था--परमेश्वर !ते छना मन बछ




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