निराश | Nirash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निराश 023
यह किसको घुने ? उसमें कोई शौर गुण भीतो नहीं था जीविशा-ठपा-
जन के दिये। पारस्म ही से मिपको वह झपनी सम्पत्ति समझता आया है,
उससे द्वाय धो बैठे ? झौर उस निर्दोष भोक्ी-भाली यालिझ्य को धोछा दे ९
एक तरफ़ कुग्नाँ दूसरी तरफ खाईं | चद इसी उधेइन्युन में था कि चाचानी
का दूधरा ख़त भी हा गया 1 किखा था--
“मेरे बेटे,
इसनी जददी दूसरा ज़त पा कर तुम्दें ताज्जद तो ज़रूर होगा, पर में सुम्दें
सावधान कर देना अपना कत्तंव्प सममता हूँ ।
विद्वान् ममुष्य झागा-पीछ्ठा सोच कर कोई काम करता है। 'बिना विदारे
जो करे सो पीछे पछुताय', जो छाम करना खूब सोच-विचार कर करना,
जददबाप्ली न करना । प्रेम के पीछे एतावला हो जाना बुद्धिमानों को शोभा नहीं
देता । जिसे तुम नवयुवक प्रेम कदते हो दद सद्या प्रेम नहों--वद तो केवक्त
पुक नशा है, जो धीरे-धीरे कम हो कर उत्तर ज्ञाता है। मेरा विश्वास करो।
सद ख़ियाँ एक-सी दहोतो हैं । शादी के कुछ दी महीने वाद तुम यद मूल
ज्ञाभोगे कि तुर्द्वारो पत्ती वद्दी ख्री है, भिप्तके प्रेम में तुम सर थाने को तैयार
ये या जिससे तुम एणा करते थे ।
जद्दाँ तक मैंने देखा तथा सुना है, में ने तो यद्दी सत्य पाया कि बेवकूफ
डससे शादी करते हैं, मिससे शि बे प्रेम करते हों; भौर शुद्धिमात् उसको प्रेम
करते हैं, जिससे कि थे शादी करें न
तुम शादी करना चाइते हो, तो फिर छिसो ऐसी ख्रो से क्यों न करो,
जो उच्च घराने का दो, जो समाज में तुर्द अगगे बढ़ा सके | मिसके साथ शादी
करके छुर्हें नीचा म देखना पढ़े, धपने सहयोगियों में सुंद न छिपादा पढ़े ॥ '
यहद्द केवल मेरी सल्लाए दे! इसछो आज्ञा मत समझना | तुम झपने मन
के भनुसार कार्य करने के क्षिये स्वतस्त्र हो ।
पर एक घात कट्दे बिना मेरा जो नहीं मानता | सुम यद जानते दो कि सें
छुम्दें कितना रनेद्द करता हैँ । तुम्दारा स्थान महेन्द्र को देने में मुझे पीड़ा दोगी
क्योकि मैं उसे नहीं चाहता । तुम मुझे: पीड़ा पहुँचाभोगे, ऐसी झाशा सा
मह्दी दे ।1...! > 5 |
इस पत्र को पढ़ कर राजेन्द्र को द्विविया और सो बढ़ गई । घदद बेचारा परे-
शान हो गया। सयालिनी था राउ्य ? अमोब हाकत थी उप्चको। -
खणालषिनों के पास होता, तो बद सब भूज जाता। अगर कुछ
केवज्ञ इतना ही कि. .,5०पृवंघार से सर्यक्रेष्ठ है, सपा बह
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