प्रवचनसार | Pravachanasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवचनसारः । ११ अथ परिणाम वस्तुखभावत्वेन निश्चिनोतिः-- णत्थि त्रिणा परिणाम अत्थों अत्थ॑ विणेह परिणामों । दव्वगुणपञ्नयत्थों अत्यो अत्थित्तणिव्वत्तो ॥ १० ॥ नास्ति विना परिणाममर्थो्थ विनिह परिणामः। द्रव्यगुणपर्ययस्थोज्थोउस्तित्वनिृत्तः ॥ १० ॥ न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामाठम्बते । वस्तुनो द्वव्यादिभिः परिणामात्‌ पृथगुपलम्भाभावान्निःपरिणामस्स खरम्शक्कल्पत्वाद धुश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधान । परिणामसब्भावो परिणामसद्भावः सत्रिति । तघ्यथा-यथा स्फटिकमणिविशेषों निर्मलोडपि जपापुष्पादिरक्तकृष्णश्वेतोपाधिवशेन रक्तकृष्णश्रेतवर्णो भबति, तथा<यं जीव: स्वभावेन झुद्ध- बुद्रैकखरूपोपि व्यवहारेण गृहस्थापेक्षया यथासम्मव सरागसम्पक्लपूवकदानपूजादिशुमानु- छानेन, तपोधनापेक्षया तु मूछोत्तरगुणादिशुभानुष्ठानेन परिणतः शुभो ज्ञातव्य इति | मिथ्या- ध्वाविरतिप्रमादकपाययोगपश्चप्रययरूपाशुमोपयोगेनाशुभो विज्ेयः | निश्चयरत्रेत्रयात्मकगुद्गो पयोगेन परिणतः जुद्धे ज्ञातव्य इति | किश्व जीवस्यासंख्येयलोकमात्रपरिणामाः सिद्धाम्ते मध्यमप्रति- पत्त्या मिध्यादष्यादिचतुर्देशगुणस्थानरूपेण कथिताः । अत्र प्राम्रतशाल्ने तान्येब गुणस्थानानिं संक्षेपेण शुभाशुभश्ुद्धोपपोगरूपेण कथितानि । कथमिति चेत्‌--मिथ्यात्यसासादनमिश्रगुण- स्थानत्रये. तारतम्येनाशभोपयोग: तदनन्तरमसंयतसम्यम्दष्टिदेशविरतप्रमतसंयतगुणस्थानत्रये' तारतम्येन शुभोपयोग:, तदनन्तरमप्रमतादिक्षीणकपायान्तगुणस्थानपट्टे तारतम्येन श॒द्धोपयोग:, तदनन्तरं सयोग्ययोगिजिनगुणस्थानद्ये झ॒द्धोपपोगफलछमिति भावाथ:॥ ९ ॥ अथ निश्ेकान्त- क्षणिंकेकान्तनिषेधाथ॑ परिणामपरिणामिनो: परस्परं कथबिदमेदं दशयतिः--णत्थि विणा परिणाम अत्थो मुक्तजीबे तावत्कथ्यते--सिद्धपर्यायरूपशुद्धपरिणाम॑ बिना झुद्धजीवपदार्थो परिणमता है, तव शुद्ध होता है । जैसे स्फटिकमणि जब पुष्पके संवंधसे रहित होती है, तब अपने शुद्ध ( निमैछठ ) भावरूप परिणमन करती है | ठीक उसीप्रकार आत्माभी विकार- रहित हुआ शुद्ध द्वोता है।इसप्रकार आत्माके तीमभाव जानना॥ ९॥ आगे बस्तुका स्वभावपरिणाम बस्तुसे अभिन्न (एकरूप ) है यह कहते हैं;-- [ परिणाम बिना अथः नास्ति ] परयोयके बिना द्रज्य नहीं होता है । क्‍योंकि द्रव्य किसी समयभी परिणमन किय्रे बिना नहीं रहता ऐसा नियम है।जो रहे तो गधेके सींगके समान असंभत्र समझना चाहिये | जैसे मोरसके परिणाम दूध, दृद्दी, घी, तक ( छांछ) इत्यादि अनेक हैं। इन निजपरिणामोंके विना गोरस जुदा नहीं पाया जाता । जिस जगह ये परिणाम नहीं होते, उस जगह गोरसकी भी सत्ता ( मौजूदगी ) नहीं होती । उसी तरह परिणामके बिना द्रव्यकी सत्ता ( मौजूदगी ) नही होती है।




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