प्रवचनसार | Pravachanasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
526
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवचनसारः । ११
अथ परिणाम वस्तुखभावत्वेन निश्चिनोतिः--
णत्थि त्रिणा परिणाम अत्थों अत्थ॑ विणेह परिणामों ।
दव्वगुणपञ्नयत्थों अत्यो अत्थित्तणिव्वत्तो ॥ १० ॥
नास्ति विना परिणाममर्थो्थ विनिह परिणामः।
द्रव्यगुणपर्ययस्थोज्थोउस्तित्वनिृत्तः ॥ १० ॥
न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामाठम्बते । वस्तुनो द्वव्यादिभिः परिणामात्
पृथगुपलम्भाभावान्निःपरिणामस्स खरम्शक्कल्पत्वाद धुश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधान ।
परिणामसब्भावो परिणामसद्भावः सत्रिति । तघ्यथा-यथा स्फटिकमणिविशेषों निर्मलोडपि
जपापुष्पादिरक्तकृष्णश्वेतोपाधिवशेन रक्तकृष्णश्रेतवर्णो भबति, तथा<यं जीव: स्वभावेन झुद्ध-
बुद्रैकखरूपोपि व्यवहारेण गृहस्थापेक्षया यथासम्मव सरागसम्पक्लपूवकदानपूजादिशुमानु-
छानेन, तपोधनापेक्षया तु मूछोत्तरगुणादिशुभानुष्ठानेन परिणतः शुभो ज्ञातव्य इति | मिथ्या-
ध्वाविरतिप्रमादकपाययोगपश्चप्रययरूपाशुमोपयोगेनाशुभो विज्ेयः | निश्चयरत्रेत्रयात्मकगुद्गो पयोगेन
परिणतः जुद्धे ज्ञातव्य इति | किश्व जीवस्यासंख्येयलोकमात्रपरिणामाः सिद्धाम्ते मध्यमप्रति-
पत्त्या मिध्यादष्यादिचतुर्देशगुणस्थानरूपेण कथिताः । अत्र प्राम्रतशाल्ने तान्येब गुणस्थानानिं
संक्षेपेण शुभाशुभश्ुद्धोपपोगरूपेण कथितानि । कथमिति चेत्--मिथ्यात्यसासादनमिश्रगुण-
स्थानत्रये. तारतम्येनाशभोपयोग: तदनन्तरमसंयतसम्यम्दष्टिदेशविरतप्रमतसंयतगुणस्थानत्रये'
तारतम्येन शुभोपयोग:, तदनन्तरमप्रमतादिक्षीणकपायान्तगुणस्थानपट्टे तारतम्येन श॒द्धोपयोग:,
तदनन्तरं सयोग्ययोगिजिनगुणस्थानद्ये झ॒द्धोपपोगफलछमिति भावाथ:॥ ९ ॥ अथ निश्ेकान्त-
क्षणिंकेकान्तनिषेधाथ॑ परिणामपरिणामिनो: परस्परं कथबिदमेदं दशयतिः--णत्थि विणा
परिणाम अत्थो मुक्तजीबे तावत्कथ्यते--सिद्धपर्यायरूपशुद्धपरिणाम॑ बिना झुद्धजीवपदार्थो
परिणमता है, तव शुद्ध होता है । जैसे स्फटिकमणि जब पुष्पके संवंधसे रहित होती है,
तब अपने शुद्ध ( निमैछठ ) भावरूप परिणमन करती है | ठीक उसीप्रकार आत्माभी विकार-
रहित हुआ शुद्ध द्वोता है।इसप्रकार आत्माके तीमभाव जानना॥ ९॥
आगे बस्तुका स्वभावपरिणाम बस्तुसे अभिन्न (एकरूप ) है यह कहते हैं;--
[ परिणाम बिना अथः नास्ति ] परयोयके बिना द्रज्य नहीं होता है । क्योंकि
द्रव्य किसी समयभी परिणमन किय्रे बिना नहीं रहता ऐसा नियम है।जो रहे
तो गधेके सींगके समान असंभत्र समझना चाहिये | जैसे मोरसके परिणाम दूध, दृद्दी,
घी, तक ( छांछ) इत्यादि अनेक हैं। इन निजपरिणामोंके विना गोरस जुदा नहीं पाया
जाता । जिस जगह ये परिणाम नहीं होते, उस जगह गोरसकी भी सत्ता ( मौजूदगी )
नहीं होती । उसी तरह परिणामके बिना द्रव्यकी सत्ता ( मौजूदगी ) नही होती है।
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