पारिजातसौरभम् भाग - 3 | Parijatasaurabham Bhag - 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Parijatasaurabham Bhag - 3 by भगवान दास - Bhagwan Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवान दास - Bhagwan Das

Add Infomation AboutBhagwan Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम: सगेः ९अछई फ्शिर नामक एक सछन एर समय मेरे आश्रममे आये ये और सात दिन तक मेरे साथ रहे थे । प्रतिदिन वह कुछ न कुछ मुझे पूछते थे, उसे सुनिये ॥ ३८ ॥ स्वठजया चेत्सितदेहजा इतो ब्रजेयुसयाय्दि हिन्दशासनम्‌। तदा दल्यनां कियता भवेत्सुखादुपाजिता तेन सहायता शिवा ॥३९॥ यदि आपकी आज्ञाके अनुसार अग्रेज यहॉसे चले जायें और हिन्द शासन आवे तो उसे किन किन पक्षोकी--दलोंकी सहायता मिलेगी | ॥३९॥ समैतदासीत्सरलूं तदुत्तरं प्रयातु देशात्सितशासनं तदा। अप॒द्रुतः स्याद्यदि देश एपको न चिन्तनीयं किमपीह ते: सितेः ॥४०॥। उनके इस प्रदनका मेरा सीघा उत्तर यह था कि अग्रेजी राज्य तो यहाँसे चछा जाय । उसके पश्चात्‌ यदि देशमे उपद्रव हो जाय तो अग्रेजोंको इसकी जिन्ता नहीं करनी चाहिये ॥ ४० ॥भवेव्यवस्थाविपरीततेह चेरक्षणेन शान्ति: समुपागमिष्यति।अनेक पश्चैमिंलितैः परस्परं वयवस्थया देश ऋधक्‌ समध्यते॥४९१॥ यदि उस समय यहाँ कुछ अव्यवस्था भी हो जायगी तो थोड़ेसमयमें ही शान्ति हो जायगी । अनेक पश्च परस्पर मिलकर व्यवस्थासेदेशकी भले प्रकार समृद्ध करेंगे ।| ४१ ॥इह स्वराज्याश्रितशासनेन तद्विरोधिरोधाय चरूथिनीक्रमः।मवेदनुज्ञात उतापसानितोन्वयुझ्॒ मामेबम तो महामना ॥४२॥ फिर उन्होंने पूछा कि जब यहाँ स्वराजशासन आदेगा तत् अग्रेजोंकेविरोधियोंकों रोकमेकेलिये सेनाका यहाँ आना स्वराज्यसर्कार स्वीकृतकरेगी या नहीं !॥ ४र ॥यथा मया कल्पितमेव ताहणशं परवर्तितं स्याद्यदि राष्ट्रशासनम्‌ ।विरोधपक्षानपनेतुमागतै: स्वरक्षणार्थ समयः तो भवेत्त्‌ ॥२३॥ यदि मेरी कब्पनाके अनुसार ही राष्ट्रिय सकरकी स्थापना होगी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now