श्री रामचरित मानस | Shri Ramacharit Manas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
1282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बालकाण्ड भ्रू
साधु चरित सुभ चरित कपासू । निरस बिसद गुनमय फल जासू ॥
जो सहि दुख परढिंद्र दुरावा | बंदनीय जेहिं जग जस पावा ॥
संतोंका चरित्र कपासके चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस,
विशद और गुणमय होता है । (कपासकी डोंडी नीरस होती है, संत-चरित्रमें भी विषया-
सक्ति नहीं है, इससे वह भी नीरस है, कपास उज्ज्वल होता है, संतका हृदय भी अज्ञान
ओर पापरूपी अन्धकारसे रहित होता है, इसलिये वह विशद है, और कपासमें गुण (तन्तु)
होते हैं, इसी प्रकार संतका चरित्र भी सद्गुणोंका भण्डार होता है, इसलिये वह ग्रुणमय /
है।) [जैसे कपासका धागा सूईके किये हुए छेदको अपना तन देकर ढक देता है, अथवा
कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने ओर बुने जानेका कष्ट सहकर भी वस्त्रके रूपमें परिणत
होकर दूसरोंके गोपनीय स्थानोंको ढकता है, उसी प्रकार] संत स्वयं दुःख सहकर दूसरोंके
छिद्दों (दोपों) को ढकता है, जिसके कारण उसने जगत्में वन्दनीय यश प्राप्त किया
है॥ ३ ॥
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू ॥
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ॥
संतोंका समाज आनन्द और कल्याणमय है, जो जग्रतूमें चलता-फिरता तीर्थैराज
(प्रयाग) है। जहाँ (उस संतसमाजरूपी प्रयागराजमें) रामभक्तिरूपी गज्जाजीकी धारा है
और ब्रह्मविचारका प्रचार सरस्वतीजी हैं ॥ ४ ॥
विधि निषेधमय कलि मल हरनी । करम कथा रबिनंदनि बरनी ॥
हरि हर कथा विराजति बेनी। सुनत सकल खुद मंगल देनी ॥
विधि और निपेध (यह करो और यह न करो) रूपी कर्मोकी कथा कलियुगके
पापोंको हरनेवाली सूर्यततया यमुनाजी हैं और भगवान् विष्णु और शंकरजीकी कथाएँ
त्रिवेणीरूपसे सुशोभित हैं, जो सुनते ही सव आनन्द और कल्याणोंकी देमेवाली हैं ॥॥ ५ ॥
बढ़ विस्वास अचल निज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ॥
सवहि सुलभ सब दिन सब देसा । सेवत सादर समन कलेसा #
[उस संतसमाजरूपी प्रयागमें] अपने धर्ममें जो अटल विश्वास है 7”
है, और शुभकर्म ही उस तीथेराजका समाज (परिकर) है। वह ” «४
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