प्रेम दर्शन | Prem Darshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
3 MB
कुल पृष्ठ :
212
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( शेर )
शाखोंकि छुपण्डित तथा समस्त तरवोंकि ज्ञाता और व्याख्याता होकर भी
अन्तमें नारंदजी भगवानकी भक्तिका ही उपदेश करते हैं । वाल्मीकि,
व्यास, शुकदेव; प्रह्मद, ध्रुव आदि महान् महात्माओंको भगवद्भक्तिमें
गाते हैं। इतना ही नहीं, स्वयं वीणा हापमें टेकर सभी युगों और सभी
समाजोगें निर्मय और निश्चित्त हुए सदा-सर्वदा भगवान्के पवित्र
नामोंका गान करते हुए सारे विधके नर-नारियोंकों पवित्र और
मंगवन्पुखी करते रहते हैं। इन भगवान् श्रीनारदने अपने दो क्ल्पों-
के न्वर्त्रिका कुछ खर्य वर्णन किया है । भागवतर्मे उक्त प्रसंज्
बढ़ा ही छुन्दर है । अपने और पाठकोके मनोरन्नके छिये
उसका कुछ मर्म नीचे दिया जाता है ।
दिव्यदष्टिसम्पन महर्षि व्यासजीने छोगोंके कल्याणके लिये
बेदोंके चार विभाग किये । पश्चम वेदरूप नानाख्यानोंसे पूर्ण
महाभारतकी रचना की । पुराणोंका निर्माण किया । इस प्रकार संग
प्राणियोके कल्याणमें प्रदत्त होनेपर भी व्याल्मगवान्कों तृप्ति नहीं हुई,
उनके चित्तमें पूर्ण दान्ति न हुई, उन्हें अपने अन्दर कुछ कमी-सी प्रतीत
होती ही रही; तब वे कुछ उदास-से होकर सरखती नदीके तटपर
बैठकर विचारने लगे-'मैने सब कुछ किया, तथापि मुझे अपने
अन्दर कुछ अभावका-सा अनुभव क्यों हो रहा है १ क्या मैंने
भागवतधर्माका विस्तारते निरूपण नहीं किया । क्योंकि भागवत
धर्म ही परगेथर और परमहंस भक्तोंकिं प्रिय हैं । वे इस
प्रकार सोच ही रहे ये कि हरियुण गाते असन्नवदन श्रीनारदजी”--
वहाँ आ पह़ेंचे । आवमगत और कुदालसमाचार पूछने-कहनेकी
फ्
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