सुदर्शन चरित्र | Sudarshan Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1३ चुदु#चा-चहिक, शुणों की खानि, ज़ितमती मे एक दिन राजि के समय पर्यडुं पर सोते हुए, स्वप्न में, छुदर्शन पश्वेत देखा | उसने स्थप्त का संवाद अपने पठिसे कहो। उत्दोंने प्रातःकाल होते ही स्वप्त-पाठक (ज्योतिपों “परिडित) को चुला कर स्वप्न का शुपाशुत फल पूछा | वियारक ने 'फहा कि, तुग्हारे एक शुभलक्षणवाला, कोर्सिवान, बेंश शिरोमणि, 77 छा अत-दिशाओं की मर््याद । अपनी ज़ोम-इति को मर्यादित करने के लिये ऊर्ष्व-दिग्रा में अर्धात्‌ पर्वत आदि पर, अधणेदियाप्पर्थात खानि आदि में और तीरछी अर्थाठ पूर्व, पश्चिम, आदि चार॑ दिशाओं में जाने फेा परिमाश नियत कर लेना । 2. “सातवां प्रत--भोजन,ओऔर कमे दो तरह से होता दे। भोजन में जो मद्य, मांसादि बिएकुल्त त्यागने यीग्य है उनका त्याग करके बाकी में से अस्त, जल आदि पुक हो बार सोग में आने बाली बस्‍्तुझों का तथा धह् आदि यार जार भोग में आनेवाली तध्तुओं का परिसाण कर छ्लेना, इसो तरद कर्म में, अज्ञार कर्म आदि झति दोषवाजे कमा का स्थाग करके याकी के कर्मो का - परिमाण कर सेना यद्द उपभोग परिभोग परिमाण रुप सातवां शत है 1 - . झ्यायवां ग्त-भनर्थ दयदढ से निश्वत ड्वीने दा है। ध्मनर्थ दुएठ खार प्रकार से होता है।--( १) अपध्यानाचरण, माती छुरे विचार के करने से, (२) प्रमोदाचरण, यानी ऋज़श्य के कारण से, (३) प्राण हिंसा से, ( ४ ) पाप ऊर्मोपदेश, पानी पापजनक केमो के उपदेश से « . अपनी ओर '्मपने कुट्स्वियों को जरूरत फे सदा उपरोक्त धार' प्रकार के अनर्थ दणढ से निवृत हीना, अनर्थ दफ्ढ विर्भण रूप आरपोा ध्यनर्भ दुशढ रा है! की कम छत. जज जद 8 पी भ ५४ जवम्ता,अत-प्तादष्य प्रति दया दुध्यान का स्याय फरफे राग-द्वप बाते प्रससों में भी समसाव रखना, यद्ट सामाविक रूप ८यमां मठ है ।-




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