झिलमिल कथाएँ | Jhilamil Kathaen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jhilamil Kathaen by जयप्रकाश भारती - Jayaprakash Bharati

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जयप्रकाश भारती - Jayaprakash Bharati

Add Infomation AboutJayaprakash Bharati

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
लोत्ल-गोत्छ नेर वफ, बफं भौर बफं ! सूरज चमके तो चमकता ही रहे-रात में भी दिन जैसा । रात हो तो खत्म ही होने का नाम न ले । दक्षिण ध्लुव के बारे में कुछ-न-कुछ हम जानते हैं। भारत के वेज्ञानिकों ने भी वहां खोजबीन की है । पर कभी वहां बड़ा देश था। आज की तरह बफं-ही-बर्फ न थी। लोग सुख से रहते थे । अनेक नगर थे । एक बड़े नगर की कथा है यह्‌ 1 वह नगर गोल-गोल था । मकान भी गोल बनाए जाति । जधिक्र भाग-दौड़ कोई न करता । यहां रहने वाले सीधे-सादे थे । उनकी जरूरतें बहुत कम थीं । वे भधिकतर पूजा-ध्यान में ही लगे रहते । लोग बहुत ही कम बोलते थे। हर कोई अपने में खोया रहता । उनका स्वभाव ही बन गया था चुप रहने का । न किसी से कुछ कहना, न किसी की सुनना । जौ जहां वैठा है, वैया है 1 उस बड़े नगर में एक आदमी अलग तरह का था । नाम था अविनीत वर्मा । यह अक्सर भागता-दौड़ता दिखाई दिया करता । कोई उससे किसी काम को कहता, तो वह मान लेता । वह सभी के काम कर देता । किसी का पशु




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now