झिलमिल कथाएँ | Jhilamil Kathaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयप्रकाश भारती - Jayaprakash Bharati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोत्ल-गोत्छ नेर
वफ, बफं भौर बफं !
सूरज चमके तो चमकता ही रहे-रात में भी दिन
जैसा । रात हो तो खत्म ही होने का नाम न ले ।
दक्षिण ध्लुव के बारे में कुछ-न-कुछ हम जानते हैं।
भारत के वेज्ञानिकों ने भी वहां खोजबीन की है । पर कभी
वहां बड़ा देश था। आज की तरह बफं-ही-बर्फ न थी।
लोग सुख से रहते थे । अनेक नगर थे । एक बड़े नगर की
कथा है यह् 1
वह नगर गोल-गोल था । मकान भी गोल बनाए
जाति । जधिक्र भाग-दौड़ कोई न करता । यहां रहने वाले
सीधे-सादे थे । उनकी जरूरतें बहुत कम थीं ।
वे भधिकतर पूजा-ध्यान में ही लगे रहते । लोग बहुत
ही कम बोलते थे। हर कोई अपने में खोया रहता । उनका
स्वभाव ही बन गया था चुप रहने का । न किसी से कुछ
कहना, न किसी की सुनना । जौ जहां वैठा है, वैया है 1
उस बड़े नगर में एक आदमी अलग तरह का था ।
नाम था अविनीत वर्मा । यह अक्सर भागता-दौड़ता दिखाई
दिया करता । कोई उससे किसी काम को कहता, तो वह
मान लेता । वह सभी के काम कर देता । किसी का पशु
User Reviews
No Reviews | Add Yours...