श्री मेघमहोदय वर्षाप्रबोधः | Meghamahoday Varshaprabodh

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Meghamahoday Varshaprabodh by पद्मविजय गणि - Padmavijay Gani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्तातप्रररगम्‌ कर हर तदा व ग्रद्दीनां योगे दुर्भिक्षता नहि किन्तु विग्नह-मायादिस्तत्कुत बैकूले भवेत्‌ ॥ १० ॥ एवं सम्स्व॒लादी स्व.द्‌ खद्ा छुभो ग्रहेद्सय; तथाप्यवग्रहो घुटटे-वषच्यः रूल्पोषपि घीरता 0 ११॥ ज्ञेय वाताभ्रयोगेन देशे वषेशुभाद्युभम्‌ । सेनाय बलवान स॑च-जलयोगेभ्य इप्पते ॥ (श। | - देशे स्परमावादुत्पत्तः क्रादिद्‌ तस्वतो बली । त्तस्मादू वषल्लोधाय लक्षयेत्‌ ते विचल्षणः ॥ १३ ॥ यदुक्‍त प्रिलेकविलासें उत्तातप्रकरणुमू--- खबासदेशक्षेसाय निरमित्तान्धवलोकयेत्‌ | तस्पोत्पातादिक वीध्य त्यजेत्‌ ते पुनरुयसी ॥ १४॥ हसन न निफीीजनममलन अपन 2जिफेन-नन»न होतीहे , क्योकि काल की अपेक्ष।क्षेत ( देश ) मे बलिउता है ॥६॥ इस- लिये वहा प्रददों का दुष्फेग होने पर भी दुःकाल नहीं होता, कितु सम्राम प्लेग आ,दि उपठ्र्वों के कारण से विपरीत भी हो जाता है ॥१०॥ उसके अद्ुसार माग्वाद हआ्ादि जागल देशों म॑ अधिक वर्षा करने वाले शुभ ग्रहों का उदय होने पर भी बग्सात का झअमाय होता हैं, क्योंकि इस देश में बुद्धिमानो ने कम ब्ृष्टि का योग बतलापाहे ॥११॥ देश में वायु ओर बादल के योग से वर्ष का शुभाशुम जानना | यह योग सब वृष्टियोगों से चलवान्‌ कहा है ॥१२॥ देश मे कभी स्पाभाविऊ उत्पात हो तो वास्त- विक बलवान्‌ होता है | इसलिये विद्यानू लोग वर्षफल जानने के लिये उस उत्पात को जाने ॥ ९३) अपने गहने के स्थान के ओर समग्र देश के कल्याण के लिये भ्ति ( शकुन ) आदि देखना चाहिये, उन म उत्पात ञाढि को देख दिसपने रपान का ओर देशका उत्ममी पुरुष त्याग कर दें ॥१४॥ : “हा जिस स्व॒रूप में स्वेदा रहता है, उस में कुछ फेग्फार मालूम




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