अबलाओं का इन्साफ | Abalaon Ka Insaf

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ञ अबलाओं का इन्साफ़ ३ अतणएव इस अभियोग का निएंय-स्थल वैवस्थत धर्मराज की अदालत है । पाठक-पाठिकाओ ! ज्रा एकाग्र चित्त होकर अपनी मनोशृत्ति को मेरे साथ धर्मराज की कचहरी की शोभा देखने के लिए भेजिए । ध्मराज के मन्दिर में एक बहुत ऊँचे स्टेज पर रत्लन-जटित सिंहासन पर धर्मराज घिराज रहे हैं। पास ही दाहिनी ओर एक गदे पर चित्रगुप्त जी अपना दफ्तर लिए बैठे हैं; और उनसे सट कर अनेक छोटे-छोटे सिंहासनों पर देवता एवं देवियाँ बेठी हैं, जिनमें सुख्य ये हैं--क्ञान, आस्तेय, भक्ति, आस्तिकता, सत्य, परोपकार, अहिंसा, शम ( मनोनिप्रह ), दम ( इन्द्रिय-निम्रह ), यज्ञ, तप, दान, अभय, स्वाध्याय ( सत्‌-शाल््रों का अध्ययन ), सत्सन्न, आजब ( सस्लता ), शौच ( पवित्रता )) अक्रोध, चैसाग्य, सन्‍्तोष, शील, अपैशुन्य (निन्‍्दा व चुग़ली न करना ); भेम, शिष्टाचार, गम्भीरता, तेज, क्षमा (सहनशीलता ), पैये, निर्वेर, साम्यभाव, आचायॉपासना (शुरु-पूजन), वर्ण-धम, आश्रम-धर्म, जाति-धम, छुल-घर्म, कत्तेज्य- परायणता और ऋृतज्ञता ! बाई तरफ़ -एक कठघरे के अन्दर पुण्यात्मा और पापी अपने-अपने इन्साफ़ की बाट देखते हैं। पुंण्यात्मा जीव कुसियों पर बेठे हैं; और पापी खड़े हैं ।धरमराज के पीछे दाहिनी तरफ़ पारिदद्‌ और वाई' तरक् यमदूत कतार बॉँधे खड़े हैं. । ल्‍ भगवान्‌ घमेराज ने कठघरे की तरफ़ निगाह करके चित्रगुप्त से पूछा कि आज कचहरी में इतनी असाधारण भीडू एक दी




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