बृहत सामायिक पाठ और बृहत प्रतिक्रमण | Brahat Samayik Path Or Brahat Pratikraman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[४] श्री अमितगति आचार्यक्षत संम्क्रुत सामाविक पाठकों मल हिन्दी गद्य-पद्म अर्थ व विधि सहित प्रकट करवाया जिसका आजकल अच्छा प्रचार है । तथा पण्डित नंदनलालजी चावलीनियासी (स्व० मुनि सुत्रमेसागरजी) ने आवक प्रतिक्रणण हिन्दी अर सहिते.बीर से० २०००८,में तेबार कि याथा जो हमने प्रकट करके “ दिगम्बर जन !के 22 वें वरकके आहकोंको भेंट बांदा था तथा कलकत्तस भी यह प्रतिक्ररण फिर प्रकट हुआ था | इसके वाद हमने उपराक्त चृहत सामायिक्र पाठ गुजराती अथे सहिस वीर से० २४६० में प्रकट किया था. वह भी खतम हा आनस इब्स सामायिक पाठकी मांग आती ही रहती थी। ऐसे समवम रतल्ामनिवासी लेकिन अभी वम्बईमें रहनबाले श्री ० झबरराल रीखबदासजी गांधीने उत्तेजित किया कि आप बृहत्‌ सामायिक पाठ व प्रतिक्रमण हिन्दी अथे सहित प्रकट करें ता सार हिन्द्रक द्वि० जर्नो्मे वृहत सामायविक प्रतिक्रणणका प्रचार होजाबे | अतः हमने यह प्रबास प्रारंभ किया भर सामायिक पाठका हिन्दी अनुवाद तथार करके इस शामिक अंशक्तो प्रकट किया है जो पाठकोंके सामने है । इस अन्थमें सामायिक प्रतिकररणकी विधि, उपवासका पच्चस्ाण आदि भी प्रकट किया है। तथा साथमें कल्याण आल्यचना भी हिन्दी अथथ सहित दी गई है। इनके अतिरिक्ति भाई झवरलाल रिखबदासजी गांधीकी सूचनासे ल्घुसहस्ननाम, बंदना-जकड़ी व तीथवेंदनां भी प्रकाशित की है। रूघुसहस्तननाम मूल तो एक पाप्वीन हस्तलिखित पुस्तकसे लिया है तथा वंदना-जकड़ी भाई झवेरलालजी गांधीन एक. हंस्तलिखित अन्थसे संग्रह करंके भेजी थी वह ली है. और « तीज




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