सहधर्मिणी | Sahadharmini
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
139
श्रेणी :
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No Information available about श्री पंचकौड़ी दे - Shri Panchakaudi De
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० सहधर्मियणी «
अर्गों में एक प्रकार की विजली ढौड़ गयी । उसके कप्तछ सरीखे
दोनों नेत्रों से जल बहने छम गया--वह थरथणती हुई,,रुद्ध
कठ खे-बोली--/छोड दो-छोड़ दो! मुके अब भूछ जाओ।
जब कभी मुसले न मिलना |? 5, : +
५अच्छा तुम्हारी यदि यद्दी इच्छा है. तो देंमागिनी !. अब
विदाई दो, जाता हूँ 1” ग ह
समेन्द्र ने इसके बाद बेहोश की भाँति चुपचाप हेमागिनी का
पक हथ खींचकर अपनी वडकती हुई छाती के ऊपर रख कर
दबा लिया और,उसी समय रुफती सॉल से एक बार, छलूचोई
आँखो से देसकर वहाँ से चले गये 1 कप
और मी कोई दूसरा ओदमी इस दृश्य को देख रहा है, यद्द
बात हेमागिनी या रमेन्द्र दोनों में से किसी ने सो नहीं जाना.)
पाठक ! 'यह और कोई नहीं सतीशचन्द्र हैं' जिनके साथ
हेमांगिनी का व्यादद्ोनियाछा है। सतीश इस वात को जानते
नहीं, थे--फभी मनमें - इसकी उन्हें चिन्ता। भी नहीं थी कि
(हमाग्रिन्नी 'के.पास चेठा है । *, + प्लाब्र
“।उत्दोंने,अपनी ऑखो, के सामने'ज़ो 'द्वद्य देखा ,डससे वे
क्रोध और ईप्यों से जलकर स्तम्मित दो चढ्ी -जडव॒त् खडे, रह
गये।,उस समय उनमें आगे चलने की शक्ति,ही नद्दीं हद गई थी !
उन्होंने उन्त कोगों की खारो चाते, खुन ली ओर सारा काम देख
लिया १ दृए्य 4 जिसके स्लाथ कुछ,दिन, के वाद दी- नका व्यादद
हामा-चद्दी दुसरे के साथ प्रमाछाप कर,रंदी है ।- पेप की सुढू-
छर्रा उड़ा रद्दी दै। मारे कोच और ईप्या से -उनका शरयर सिर
से पेर तक जछ,/उठा ॥ अत- दिन्रा देमागिनी/से भेंट किये।ही वे
उल्के पाँव पागछ ,की ' भाँति 'जद्दी चदों, से चाहर,निकल ग़ये | दे.
न.माल्ूम कब तक-रास्ते में ,घूमते:रहे--इसका, उन्हे कुछ पता
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