लालबहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri

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Lal Bahadur Shastri by श्री व्यथित हृदय - Shri Vyathit Hridy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राराव हराम यु जिले का कोई ऐसा गाँद हो, जहाँ शास्त्रों डो न गए हों, प्रौर रूदाजित्‌ ही ऐसा कोई रूस्या हो, जहाँ शास्त्री भी मे भाषण न दिया हो । जित्ते के गाँव-गाँग में, कोने-कोने में धास्त्ी जो के माम की गूँज है प्रात कास भर से निकलते थे, हो फिर प्राधी राठ के पहले चर नहीं प्नौटसे पे । खामे-पीने की सुषि, शोर मं बाल-अच्बों को विन्‍्ता | कांग्रेस के कार्यों मे-- उसके उसूर्छों ने जैसे उसके मत को पागल गर दिया ही | डनके मन के उसी पायसपन मे--उनकों उसी परिश्रमशीसता मे--उम्हें सोकप्रिय बना दिमा । इसमा सोकप्रिय घना दिया वि बे जिस वी सीमा को स्लॉपकर प्रास्त में पहुँचे, भौर प्रपदी विशिष्टवार्भों से प्रोत की सीमा को लाँधकर सपूण देश के मेठा के पद पर भासीन हो गए । अस्तुत दास्‍्त्री भी गी उप्तति ईर्प्पा की वस्तु है--थिक्षा




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