मार्क्सवादी अर्थशास्त्र | Marks Vadi Arth Shastr

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Marks Vadi Arth Shastr by भूपेन्द्रनाथ सान्याल - Bhupendranath Saanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब किसी वस्तु के श्रर्ध्य को मुद्रा ( रुपये पैसों ) में श्रॉकते हैं तो उसको उस वस्तु का मूल्य फहते हं। किसी बस्तु का मूल्य इस बात पर निमर है कि फ़रितना श्रम उस वस्तु में पुजीक्षत है और फितना भम मुद्रा में सम्मिलित है | उत्तादक शक्ति की वृद्धि के साथ बसों के मूल्य में हास होता है और यदि साना चाँदी आदि का पैशवार सइज हो जाय तामूल्य में वृद्धि | जायगी क्योंकि साना आदि में सामाजिक भ्रम आदि का १रिसाण पट जायगा ) जो परिमाण साना या किसा वस्तु के ध्रध्य॑ के समान है उस परिमाणु में ता कोई अन्तर नहीं झता है परत मिन्न देशों में इस परिमाण को मूल्य के पिमिन्न रुप दिये जाते हैं क्‍्यांक्रि मूल्य फा एकक मिन देशों मे भिन्न है। पहले पहल मूल्य पा एक्क सोना चाँदा आंद ह एक विशिष्ट वज़न को है माना जाता था जैप्त अग्रेजा पाउड ( श्राघ सर के करीब ) म ज्ादिर है । साना चाँदी के भाव में कुछ भी परिवतन शा मूल्य के मापद॒एढ़ में काई अन्तर नहीं पड़ता । उदाइरणए फे लिये चाँदी का भाव कुछ भी ह। रुपये के चवन्नी सदा चार ही होंगे। श्रल्ग श्रत्नग देशां के अलग-ध्रलग ठिक्‍के होन पर भी उनका सम्बन्ध स्थापित करना मुश्किल नहीं हे क्योंकि सोने को अरध्य सब देशों में दी समान है। आर क॑ दिन वस्तुओं के श्रध्य को भ्रम के घटों का रूप मे देकर मुद्रा या सिका का रूप दिया जाता है| छिकक के साथ वस्तु का वास्तत्रिक विनिमय ने होने पर भी उठता अध्य सिक्का में झांका जाता है। अध्य का परिसाण और मूल्य के मानदरह के अलावा सिक्धा वस्तुओं के विनिमय के माध्यम का भी काम फरता है। मुद्रा के करैंर बहुत से वस्तुओं का एक दूसरे के सम्पर्क में आना असम्भप नहीं ता कठिन अवश्य ही दा जाता | वस्तुओं श्श




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