मन परदेसी | Man Paradesi

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Man Paradesi  by कर्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अब और दर-दर की ठोकर हम नहीं खाएंगे। अब और मैं तुम्हें दाक्टरों की नज़रों में जलील नहीं होने दूंगा---एक कुंवारी लड़की, जिसके पेट में बच्चा था ! हर डावटर फीस लेती | मेरा मुआयना करती और जब हम उसे बताते कि मैं कुंवारी हूं, यूं मेरी तरफ देखती जैसे मैंने कोई पाप किया हो। कड़े का ढेर। किसीकों मेरी आप-बीती पर यकीन न आता । मेरी कहानी सुनकर, इन्द्र को कोई मुंह लगाने के लिए तैयार न होता। हर कोई यही सोचता, कुसूर उसीका था। एक दिन तो एक डाक्टर ने हमें धमकी दी---अगर आप एक मिनट और मेरे क्लिनिक में नज़र आए तो मैं आपको पुलिस के हवाले कर दूंगी । / उस दिन इन्द्र ने पक्का फ़ैसला कर लिया कि वह मेरे साथ ब्याह कर लेगा। चाहे कोई भी क़ीमत देनी पड़े, वह मुझे और ज़लील नहीं होने देगा। ः / अम्मीजान ! आज मैं उस इन्द्र की बीवी हूं। ' मुझे अभी आपको और चहुत कुछ बताना है। डाक का वक़्त हो गया है, इसलिए यह चिट्ठी यहीं ख़त्म करती हूं । आपकी वेढी, सीमा । ” 1 वेगम मुजीव अभी चिट्ठी पढ़ ही पाई थी कि शेख मुजीव का बड़ा भाई शेख़ शब्बीर दनदनाता हुआ उसके कमरे में आ घुसा । लाल-पीला हो रहा था। उसे अभी-अभी ख़बर मिली थी। वेगम' मुजीब ने चिट्ठी को अपने तकिया के नीचे छिपा लिया । उसका जेठ निहायत दकियानसी विचारों का जागीरदार था, कट्टर फ़िरकापरस्त । है “ मैंन कहता था कि लड़कियों को पढ़ाने की कोई ज़रूरत नहीं। इन्हें किसीके पलले बांधकर अपनी जान छुड़ाओ। अब तुमने देख लिया कि आजकल की औलाद क्या गुल खिलाती है ? एक तुम्हारा मियां, मुंह- जोर था, सारी उम्र अपने-आपको धोखा देता रहा। हिन्दू का पिट्ठू बना २४ / मन परदेसी




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