हिंदी भक्ति श्रगार का स्वरुप | Hindi Bhakti Shranfaar Ka Swaroop

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Hindi Bhakti Shranfaar Ka Swaroop by मिथिलेश कान्ति - Mithilesh Kanti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरस में काम की परम्परा श्र फिव्प मैं पपु पर घर्म का छिल्म ऐ सिकट सम्मल्ध है । देवासय मस्जिद सौर गिरे के रूप में धर्म का अप बतकर घिक््प भी विश्व-स्यापक हुआ । यधार्प में प्रातौत छिक्तप पर्म के पीठों में ही शपते पूर्ण वैंसब को प्राप्स हुआ है। भारत इसका प्रतिगाद पहीँ है । जिस प्रकार धर्म के एक पश्च में काम कौ प्रचुशता दिफ़तसताई गा चुकी है सती प्रकार पिल्प में मी काम की स्पध्ट ममिस्मकिति हुई है ! मंदिर हिस्दू मंदिर सामूहिक रूप पे एकत्र होकर पूजा झरने का स्थान नहीं है । यह इष्ट्येव के ऐश्वर्य प्रदर्शधस हेतु निर्मित प्राप्ताद है जिसमें इष्टबेग कौ छपासमा मिह्टिषत पुजारियों हारा सिदित्रत एवं बिल्तृव मिगमों के खतुसार होती है! मुसखश मानों की मस्जिद और ईसाइयों के पिरये से यह इसी श्य में भिरन है। मम्दिर केवल इप्ट के रहने का एक साधारथ प्रासाए मात ही तहीं है बस्कि सह अज्लाप्ड का रूप भी है जिसमें प्रतीकों हारा सुष्ति कौ नियामक घक्तियों का जित्रण रहता है। $6का तिर्मान बावर्मो में स्वीकृत विधामों क झनुसार ही किया जाएा है और प्रत्येक देता के छोक के ही बतुरूप उसके मंदिर का मिर्माण होता है। विभिन्‍न प्रकार के देवताओं तथा क्षारमों के अनुसार मस्दिर भी विशिग्त प्रकार के होऐ हैं। बियर के मतामूसार मस्दिर का सिर्माय तीन भाणों मैं होता है। इसका मुष्य भात बीच में होता है जिसे पर्मपृह कहते है। इस पर्भेमृद के कमर धात जडों हा ठा है जोकि स्प्द-शोक या सप्तन्मूमि का प्रतीक है। इसी गर्मगृश्ठ ये को मूठ री ध्थापता होती है। धर्ममृह के जाने दो मध्यप होठे हैं । मे स्तम्शों पर. आाषारित होते हैं जौर इनमें छरोशों हाए प्रकाछ बाते कौ प्यप््था रहती हैं। मुस्य मड़पों के सतिरिक्त शरगेक शोटे मडप भी हो सकते हैं। सम्पूर्ण मंदिर रची 'ुर्सी पर लिभिठ होता है दिस तक जाने के शिए सौड़ियाँ होती हैं । मदिर ने बाह्य और जास्यांतर मायों मैं प्रिप्वकारी और अर्ंकार रहा है। यहाँ पर की मुरदियों का स्शात निशिबत होता है। मंदिर का प्रत्मैक स्थान महृ्वपूर्ण होते के झयरभ उसका कोईं भी स्पान रिबद सही रसा जा सदता है। हिस्दू मौदिए अपने घंकरण की विशेषताओं के ढारा ही पहचाना जाता हैं भौर यही इसकौ अस्य मंदिरों से मिला है। आजकल आप्ठ अमिद्य र श्राषीत मूर्तियों ( मथुरा से प्राप्त ) सामास्यत' प्रषपत शताम्दी हं० के पार गर्ष पूर्व पै लेकर द्वितीप प्रताम्श ई+ के दास वर्ष




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