कंचन करत खरौ | Kanchan Karat Kharao

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Kanchan Karat Kharao by गोपाल प्रसाद मुद्गल - Gopal Mudgal Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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*चोसे या काम के ताई मेरे पास आयी है। कहाँ राजा भोज कहां गयगू तेली ? कहा राम-राम कहाँ ठाँय-ढाय ? आकास पाताल की अतर है ।” *अजी ऐसी वात चो करी, हमकू” तो आपकी ई सहतौ है।” “चोखे भया, तु श्रायी है ती त्तरो अनुरोध का टारौजाएं पर सम भौत बूरो भरा गयो है। बेटा बारे रहो फार । वारह बारह मनके है क बढ़े है। हाँन्मा की ज्वाव छ छ भहीना मे देंम हैं। “'पड़ितजी कछु होय, विटिया के पीरे हाथ तौ करने ई हैं । “अरे लाला ! पीरे हाथ चो करन हैँ। विटिया को ब्याह खूब धूम धाम ते कर । अकेली बेटी है। जनम भर कमाओी है । चोखी बाहरगत चल रही है ।” “अजी दूर के ढोल सुहावते लगे । खर, कोक छोरा तौ वताओ 1” “भाई, कसौ लडका चइए ? 'क्सौ रे 1 हाँ क्तिक पढ़ी लिखो होय ? फ्तिक तक को बतायौ जाए ? अर याहू बात कू जान ले लडका देखवे ना जाए। बजार म जसे धन सौ चीज खरीदी जाए याही भाति समाज की हाट में छोर खरीद जाए | इन्जीनियर, जे ई एन, एई एन, डाबटर प्रौफेसर, वकील भाव के अनुसार लए जाए। छोरान के हू टंडर भरे जाए अन्तर इतेकई है या सौदा मे अधिक कौ दडर स्वीकारी जाए । + रग्यो की बातन कू” सुनिक चोखे कू झूझर आ रही । रग्गो उल्टी सीधी बात कर रह्यौ पर मज बावरी होय । दवी बिल्ली मूसेन प्‌ कान कटाव याही सो चोजें रग्गो की सब बातन कू” सुनि रह्मयो। वु अपन हूँ सम्हार क कसी छोरा द्वोय ? क्तिक पढी लिखी होय ? वितंक तानू” कौ हाय ? या विस मे अपनी राय प्रकट करता रह्यौ। अखीर म्‌ रग्गी जपने दोनो घोदू न प द्वाथ धरिक मूंढा प ते उठौ । अलमारी प्लीली । एक पुरानी डायरो निकासी | डायरी दियाय के तारीफ के पुल वाँधे। कछू चोखे क प्ले प बछू भूभरि मं पानी को थुदियान को भौति लोप है गए। डायरी देखिबे के ताई रग्गो न टीन की पुरानी सद्ूक मं ते एक डड़ी कौ चस्मा निकासों। चस्मा चढ़ाय वीं. पापल म्हों त अगुरिया प्र शुक्क लगाय के डायरी के पाना बडी सावधानी सौं पल तौ मर जिदा क्ींगुर मवयी आदि तिकसप र । जखार म एक पन्‍ना प बाकी नजर ठह्री, आँख गढ़ाइ । कछू साथ समझ के ग्रदन ऊँची करो बड़ मार्विश्यदू के एक छारा की बात छट्टी छोरा कौ सम भगवती, एम ए पक पढ़ी दे । 6 कचन करत खरी




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