नयी दिशाएँ | Nayee Dishayen

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Nayee Dishayen by रवीन्द्र वाघ - Ravindra Wagh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सो गई और अपने बेटे के कपडो को तकिये की तरह सिर फे तीचे रख लिया था। सुबह का आगमन हो गया था। दयानद ने उन आदमियो को जगाकर भेज दिया । उन्होने दरयाजा खोल दिया | जानकी दीपक के पास ही सो गई थी। उसके सिर के नीचे मिलन के कपड़े थे। दयानद ने जानकी को ऐसी हालत में देखा तो दुखी हो गए। उपहोनें मिलन के कपडे धीरे से निकाल लिए और माथे के तीचे तकिया सरका दिया । वे उन कपडो को अलमारी में रखना चाहते थे। जैसे ही वे अलमारी ऊे पास पहुँचे तो उन कपडो से मुह ढक कर सिसकियाँ लेने लगे । अब तक जानकी जाग गई थी। वह्‌ उठी और अपने पति के पीछे आकर खडी हो गई | उसकी आँखे भी गीली थी । उसने अपने पति के हाथ से कपडे लिए और अलमारी में रख विए। जानकी ने कहा--“जब हम इस गाँव मे नही रहेगे। में तो मिलत की याद में यहाँ घुल-घुलकर मर जाऊँगी ।” अपने आँसू पोछते हुए. दयानद ने कहा--“पगली जैसी वाते करती हो । हम अपने बेटे को यहाँ अकेला छोडकर कही ओर जा सकते ह ? है तुम में हिम्मत ? यह मिलन का कमरा, मिलन जा वगीचा, यहा रखी मिलन की सारी चीजे तुम्हे पुकार-पुकार कर वापिस बुला लेगी ।” दयानद ने मिलन के एक गरुलाव के पौधे की याद दिलाईं। पता नहीं केसे, जानकी भे जचानक एक ताकन-सी जा गई। उसने दयानद के मुह पर हाथ रख दिया और 'पानी लाइए' कहती हुई वाहर दौडकर गई । दयानद पानी लेकर वाहर भराए। दोनो ने पौध का पाती दिया आस-पास की मिट्टी का सँवारा। चारा ओर से पौधे को मिट्टी से ढक सा दिया। दयानद पानी डालते रह । दोनो क हाथ कीचड से सने थे । जानकी ने दयावद करी ओर देखा--.''स इस पौधे को मरने नही दूगी । यह मिलन का पोधा है 1” “इसे हम जिन्दा रखगे ।” दोना कितनी देर तक वही खड रहे। थोड़ी दर के याद वे वही येठ गए । सूरज ऊपर चढ रहा था । फिर से ल्ञाग आँगन म जाने जगे थे। गाय की कुछ जौरते भी जा गयी। पहाँ के रिय्राज के मुतायिक जानकी ौर दयानद का कुछ नहीं परता पडा। एक जिसान ने जानवरा को दाना-पानी दे दिया जौर है८ / नया टियाए




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