प्रोक्ति स्वरुप संरचना और शैली | Prokti Swaroop Sanrachna Aur Shaili

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Prokti Swaroop Sanrachna Aur Shaili by इन्दु शीतांशु - Indu Shitanshu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रोवित ; स्वरूप, संरचना और शैली 21 बदन ने दो प्रकार के विनिमयों का उल्लेख किया हैं-८ 1.7.2.2.1. सुस्पष्ट सीमा-विनिमय 1 रु 1.7.2.2. वार्तालापी विनिमय । 1.7.2.3, प्रगमन : प्रोक्ति में उक्ति से लघुतर इकाई की 'प्रगमन” कह जाता है। एक उक्ति में कई 'प्रगमन' संभव है । उदाहरण के लिए कक्षा-अध्यायन के क्रम में उपस्यित निम्नलिखित प्रौक्ति को देखा जा सकता है-- 'पैरिस, ठीक है ।* 'और सुधा, स्वीडेन की राजघानी' ? इस उदाहरण में अध्यापक की उक्ति के दो भाग हैं। पहले भाग में उत्तर सही होने का उल्लेख हैं, और दूसरे भाग में दूसरे से किया गया ताजा प्रश्न हैं। इत दोनों को दो 'प्रगमन” के रूप मे रेखांकित किया जाएगा। 'प्रगमरनां के सात प्रकार विदिष्ट किये गये हैं--1,7.2.3.1. सीमांतक सारम्भक (साधय178), 1-7-2-3.2. संकेन्द्रक (86०एश०७), 1.7.2.3.3 उद्घाटक (0/9००॥8), 1.7.2.3.4. समर्थक (509 व्गागढ), 1.7.2.3.5, चुबोती १रक(८॥881101808):1-7.2.3,6. बद्ध उद्घाटक(800100 96४78) और 1.7.2.3.7. पुनः उद्घाटक (1२९-०09७7ग्र8) ! 1.7.2.3.1. सीमांतक आरंभक यह प्रायः शीर्ष (1180) से बनता है, जो था तो रेखांकक ()4911187) ह्वोता है था एक भाह्वाव (5795709) होता है भौर विशेषक (0प्थवील) के बतौर मौन दवाव डालता है । यह कार्ये-विवरण के सीमोत का सुस्पष्ट रेखांकक होता है भोर ऐसे कार्य (8०४) की समाविष्ट करता है, जो अपने-आप में धयान खीचने वाले पूर्व प्रतिपादूय (7८-4॥०॥१०) एकरु होते हैं। 1.7.2.3.2. संकेद्धक : संकेन्द्रक अपने अंतर्गत विकल्पात्मक संकेत को समाविष्ट करता है। “विकल्पात्मक पूर्वशीर्ष (आरंभिक) अनिवायें शीपें (अधिवयाल या निष्कर्ष ) ओर विकल्प्रत्मक उचरशीर्ष (टिप्पणी) के द्वारा अनुसरित होता है। 'सौमांतक- आरंभक' की तरह 'सकैन्द्रक' भी कार्य-विवरण के सीमांत का सुस्पष्ट रेखांकक होता है तथा ध्यावाकर्षी पुर्वेश्नतिपादूय एकक की अपने में समाविष्द करता है। 1.7.2,3.3, उद्धाटक : 'उद्घाठक 'कार्यविवरण' के आरंभ पर आधारित होते हैं। इसमें पहचाव




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